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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
धवलाकार के सन्मुख उपस्थित साहित्य सत्प्ररूपणा में उल्लिखित साहित्य -
धवला और जयधवला को देखने से पता चलता है कि उनके रचयिता वीरसेन आचार्य के सन्मुख बहुत विशाल जैन साहित्य प्रस्तुत था । सत्प्ररूपणा का जो भाग अब प्रकाशित हो रहा है उसमें उन्होंने सत्कर्मप्राभृत व कषायप्रा भृत के नामोल्लेख व उनके विविध अधिकारों के उल्लेख व अवतरण आदि दिये हैं । इनके अतिरिक्त सिद्धसेन दिवाकरकृत सन्मतितर्क का 'सम्मइसुत्त' (सन्मतिसूत्र) नाम से उल्लेख किया है और एक स्थल पर उसके कथन से विरोध बताकर उसका समाधान किया है, तथा उसकी सात गाथाओं को उद्धृत किया है । उन्होंने अकलंकदेवकृत तत्वार्थराजवार्तिका का 'तत्वार्थभाष्य' नाम से उल्लेख किया है और उसके अनेक अवतरण कहीं शब्दश: और कहीं कुछ परिवर्तन के साथ दिये हैं ३ । इनके सिवाय उन्होंने जो २१६ संस्कृत व प्राकृत पद्य बहुधा 'उक्तं च' कहकर और कहीं कहीं बिना ऐसी सूचना के उद्धृत किये हैं उनमें से हमें ६ कुन्दकुन्दकृत प्रवचनसार, पंचास्तिकाय व उसकी जयसेनकृत टीका में ५, ७ तिलोयपण्णत्ति में , १२ बट्टकेरकृत मूलाचार में ६, १ अकलंकदेवकृत लघीयत्रयी में ७, २ मूलाराधना में ', ५ वसुनन्दिश्रावकाचार में ९, १ प्रभाचन्द्रकृत शाकटायन-न्यास में १०, १ देवसनकृत नयचक्र में ११, व १ विद्यानन्दकृत आप्तपरीक्षा में मिले हैं १२ । गोम्मटसार जीवकाण्ड, कर्मकाण्ड, व जीवप्रबोधनी टीका में इसकी ११० गाथाएं पाई गई हैं जो स्पष्टत: वहां पर यहीं से ली गई हैं। कई जगह तिलोयपण्णत्तिकी गाथाओं के विषय का उन्हीं शब्दों में संस्कृत पद्य अथवा गद्य द्वारा वर्णन किया १३ है व यतिवृषभाचार्य के मत का भी यहां उल्लेख आया है । इनके
१. पृ. २०८, २२१, २२६ आदि २. पृ. १५ व गाथा नं. ५, ६, ७, ८, ९,६७, ६९. ३. पृ. २०३, २२६, २३२, २३४, २३९. ४. गाथा नं. १, १३, ४६, ७२, ७३, १९८. ५. गाथा नं. २०, ३५, ३७,५५, ५६, ६०. ६. गाथा नं. १८, ३१ (पाठभेद) ६५ (पाठभेद) ७०, ७१, १३४, १४७, १४८, १४९, १५०, १५१, १५२ ७. गाथा नं. ११ ८. गाथा नं. १६७, १६८, ९. गाथा नं. ५८, १६७, १६८, ३०, ७४ १०. गाथा नं. २. ११. गाथा नं. १०. १२. गाथा नं. २२ १३. देखो पृ. १०, २८, २९, ३२, ३३ आदि १४. देखो पृ. ३०२