Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुरुषार्थसिद्धय पाय ]
पुद्गल-स्कन्धोंके जुड़ले-विघटनेसे भिन्नभिन्न असंबद्ध एवं खंडशः ज्ञान होता। वैसे अश्रृंखल टुकड़ेरूप ज्ञानसे स्मृति प्रत्यभिज्ञान आदि कोई ज्ञान नहीं हो सकने । एक शरीरके नष्ट हो जाने पर तो उस पुद्गलस्कन्धसे सम्बन्ध रखनेवाले ज्ञानतन्तु नष्ट ही मानने पड़ेंगे। नवीन पुदगलस्कन्धों में नवीन ही ज्ञानतन्तु उत्पन्न होंगे। वैसी अवस्था पूर्व बातों की स्मृति कभी नहीं आ सकती, परन्तु पूर्व बातोंकी स्मृति बालकोंमें देखी जाती है । किसी किसी बालकका ज्ञान इतना विकाशशील (विशेष क्षयोपशमरूपमें ) देखा जाता है कि वह बिना शिक्षा लिये ३,४ वर्षकी आयुमें कठिनसे कठिन गणितके प्रश्नोंका उत्तर निकाल देता है, कोई कोई बालक बिना शिक्षा लिए बढ़ियासे-बढ़िया गायन गाता है, कोई कोई बालक स्वल्प शिक्षा लेनेपर झटपट एक गणनीय विद्वान् बन जाता है । ये सब बातें ऐसी हैं जो नवीन बालकके पूर्वसंस्कारोंको सिद्ध करती हैं, और बतलाती हैं कि 'जीव' एक पदार्थ है, उसीकी पूर्वापर अवस्थाओं में क्रमसे होनेवाले ये विकाश हैं।
पुरुष शब्दका अर्थ आत्मा है। पुरुष शब्द मनुष्यगतिमें रहनेवाले पुल्लिग-शरीरधारी जीवमें भी प्रचलित है । मनुष्योंके तीन भेद हैं१ पुरुष, २ स्त्री और ३ नपुंसक । यहांपर पुरुष शब्दका अर्थ मनुष्य गति वाला पुरुष नहीं है, किंतु आत्मा है । पुरुष, आत्मा, जीव, चेतन, ज्ञाता, दृष्टा, ये सब एक ही अर्थके वाचक हैं । जो उत्तम गुणोंको धारण करे, लोकमें उत्तम कार्य करे, संसारी जीवोंमें जो स्वयं उत्तमता प्राप्त करे
और उत्तम चारित्रवाला बनकर लोकमें अपनेको सर्वोत्तम पूज्य बनावे, उसे है। उसके मरणकालको ४ वर्ष ६ मास होते हैं । बालकने सिपाहीको पहचान भी लिया था । सुना जाता है कि महाराज ने उस बालकको बुलाकर उससे उस सिपाहीको क्षमा दिलाई थी और बालकको पारितोषिक भी दिया था। यह सच्ची घटना समाचारपत्रोंमें भी निकल चुकी है, इस घटनासे भलोभांति सिद्ध होता है कि जीव एक स्वतंत्र वस्तु है, वह अनेक पर्यायोंमें घूमता-फिरता हैं, उसीके ज्ञानगुणका पूर्वापर एकरूप में यह परिणाम दीखता है।
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