Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 404
________________ पुरुषार्थसिद्धयपाय ] [ ३८५ कैलाश चंपापुर, पावापुर, गिरनारिसे मोक्ष प्राप्त की है। वे क्षेत्र धन्य एवं परम पूज्य हैं जिनमें कि आपका चरणरज लगा हुआ है । इसी प्रकार भगवान के कालोंका वर्णन करना कालस्तवन कहलाता है, जैसे-हे भगवन् आपने अमुक समयमें गर्भावतरण किया था, अमुक मितिमें आपका जन्मकल्याणक हुआ था. अमुक शुभ मितिमें आपका दीक्षोत्सव हुआ है " इत्यादिरूपसे समयस्तवन करना कालस्तवन है । जिसमें भगवान के असाधारण गुणों का वर्णन किया जाय तो वह भावस्तवन कहलाता है, जैसे- हे भगवन् ! आप केवल ज्ञानज्योतिद्वारा इस चराचर समस्त विश्वको प्रत्यक्ष युगपत् देखते व जानते हैं। आपमें अनंत वीर्य अनंत दर्शन अनंत चारित्र, अनंत सुख आदि अनंत गुण प्रगट हो चुके है। आपके समान किसी अन्य व्यक्ति में वैसे क्षायिक गुण नहीं पाये जाते हैं । प्रतिक्षण आपमें अनंत गुणों का उत्पाद व्यय एवं धौव्य होता रहता है । इस प्रकार स्तवके भेद कहे गये । अब बंदनाका स्वरूप कहा जाता है - परमपूज्य श्रीअर्हत सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं सर्व साधु इन पांचों परमेष्ठियोंको नमस्कार करना, उनका आशीर्वाद और जयवादके साथ नामोच्चारण करना जैसे हे भगवन् आप धन्य हैं आपकी जय हो, इत्यादिरूपसे उनकी वंदना कर्म है यह वंदना - विनय कर्म पांच हेतुओंसे किया जाता है - एक तो समस्त लोक विनयादि क्रिया करता है इसलिए उसे करना, २ - इंद्रिय सुखोंकी अभिलाषा करना, ३- अपने किसी प्रयोजनकी वांछासे करना, ४किसी विशेष भयके उपस्थित होनेपर करना तथा ५- मोक्षप्राप्तिकी इच्छासे करना; इसप्रकार पांच उद्देश्योंसे विनय -- वंदना की जाती है । उनमें अंतिम मोक्षप्राप्तिकी भावनासे जो विनय की जाती है वह कर्मनिर्जराका कारण होती है बाकी शुभबंधकी कारण रूप हैं। अंतिम विनय सभी पुरुषोंको अवश्य करना चाहिये । बंदना के अनेक प्रकार हैं, जैसे--मुनिमहाराजके For Private & Personal Use Only " ૪ Jain Education International www.jainelibrary.org

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