Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 406
________________ पुरुषार्थसिद्धयपाय ] कुलिंगीको, कुदेवोंको वंदना नहीं करेगा, इसलिये जो व्रत विधानमें उच्चपदस्थाधिकारी हैं वे ही निम्न पदस्थवालों से वंदनीय हैं। यहां पर यह शंका हो सकती है कि गृहस्थ माता पिता एवं लौकिक शिक्षा देनेवाले गुरुओंको प्रणामादि करें यां नहीं ? इसका उत्तर यह है कि प्रणामादि करना लोकव्यवहार है । लोकव्यवहारकी दृष्टिसे जो विनय किया जाता है वह धार्मिक बुद्धिसे नहीं बुद्धिसे नहीं समझा जाता, धार्मिक बुद्धिसे जो विनय होता है भक्ति भावपूर्वक होता है, ऐसा विनय सम्यग्दृष्टि संयमी पुरुषोंके लिये ही किया जा सकता है । उनमें भी जघन्य संयमी पुरुषों द्वारा उन्नतोन्नत चारित्रधारियोंका किया जाता है । संयमीपुरुषों द्वारा असंयमियोंका विनय धर्मविरुद्ध है । इसलिये धार्मिक दृष्टिसे संयमी श्रावक असंयमी माता पिता गुरु आदिको भी नमस्कारादि नहीं कर सकता । जो संयमी संयमियोंके लिये वंदना करते हैं वे भी समय के अनुसार करते हैं जिस समय बंदनीय पुरुष अच्छी तरह बैठे होते हैं उस समय मैं बंदना करता हूं ऐसा शब्द कह कर उनकी बंदनाकी भावेच्छा जानकर ही बंदना करते हैं । जिस समय बंदनीय संयमी किसी कार्यमें आकुलित हों. आहार करते हों, मलमूत्र बाधा दूर करते हों, सोये हुए हों, किसी दूसरी ओर मुख किये बैठे हों, तब वैसी स्थितिमें बंदना नहीं करना चाहिये । इसका यह अर्थ नहीं है कि उस समय बंदनीय संयमी बंदना के पात्र नहीं रहते हैं, नहीं, वे बंदनीय पात्र तो सदैव रहते हैं, परंतु बंदनाका योजन इतना है कि उन्हें विशिष्टपुरुष समझकर महत्त्व देना एवं उनकी आत्मा में अपनी ओरसे धर्मबुद्धि एवं नम्र सरल परिणाम प्रगट हों वैसे भावों को प्रदर्शन करना, यह बात बिना उनके उपयुक्त चित्त हुए नहीं बन सकती, इसलिए जिस समय उनका अपनी ओर चित्त उपयुक्त हो, शांतचित्त होकर आसनपर अच्छी तरह बैठे हों उसी समय बंदना करना चाहिये वही बदनाका उपयोगी समय है । मुनियों द्वारा आचार्य उपाध्याय आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ३८७

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