Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 411
________________ ३६२ [ पुरुषार्थसिद्धयुपाय चाहना रखनेवाले, निद्राको जीतनेवाले, इंद्रियोंको वशमें रखनेवाले एवं परिमाणोंको विशुद्ध रखनेवाले सूत्राशयोंकोजाननेवाले, सामर्थ्य विशेष रखनेवाले, आत्माको कषायोंसे रहित शुद्ध रखनेवाले, बलशाली अर्थात् आहारादि वाह्य बलवर्धक सामग्रीविशिष्ट, दोनों भुजाओंको लम्बायमान रखनेवाले, तथा चार अंगुलके अंतरसे दोनों पैरोंको रखनेवाले मुनि जिससमय निश्चल बनकर ध्यानमें स्थिर होते हैं उस समय कायोत्सर्ग ध्यान की योग्यता प्राप्त होती है । यह कायोत्सर्ग भी नाम स्थापना आदि भेदों से छहप्रकार है । पापमुक्त नामसे होनेवाले पापकी शुद्धिके लिये जो कायोसर्ग होता है वह नाम कायोत्सर्ग है, इसीप्रकार स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावजनित, पापों की निवृत्ति एवं आत्मविशुद्धिके लिये जो कायोत्सर्ग किया जाता है वह नामादि कायोत्सर्ग कहा जाता है । कायोत्सर्गमें हस्त ताद नेत्र ओष्ठ भ्रकुटि आदि सर्वांग निश्चल बना लिया जाता है, विना सर्वांगक निश्चल किये कायोत्सर्ग ध्यानकी सिद्धि नहीं होती है । कायोत्सर्ग पापोंकी निवृत्ति, तपकी वृद्धि कर्मोंकी निर्जरा आदि बातोंकी सिद्धिके लिये किया जाता है । कायोत्सर्गका जघन्यकाल अंतमुहूर्त है । एक आवलिसे ऊपर और मुहूर्तसे एक समय कम समयका नाम अंतमुहूर्त है । आवलिमें भी असंख्यात समय होते हैं और अंतमुहूर्तमें भी असंख्यात सयय होते हैं, कायोत्सर्गका उत्कृष्ट काल एक वर्ष है। यद्यपि ध्यानका समय अंतर्मुहूर्त ही उत्कृष्टकहा गया है परन्तु यहाँपर शरीरसे ममत्व छोड़कर एक आसन विशेषसे ध्यान लगानेका नाम कायोत्सर्ग है उसमें अनेक ध्यान हो जाते हैं । एक ध्येयके अवलंवनसे एक परिणाम की स्थिरता अंतमुहूर्तसे अधिक नहीं रह सकती, इसलिये उत्कृष्ट कायोत्सर्गमें अनेक ध्येय एवं परिमाणशृंखलाएं बदल जाती हैं। अंतमुह तसे ऊपर और एक वर्षके भीतर जितने समय हैं, दिन, रात, पक्ष, मासादि, वे उसके मध्यम भेदमें परिगृहीत किये जाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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