Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 412
________________ पुरुषार्थसिद्धयपाय ] [३६३ ‘णमो अरहंताणं णमो सिद्धाणं' इन दो पदोंका उच्चारण करने में एक उच्छ्वास होता है। ‘णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं' इन दो पदोंके चितवन में एक उच्छवास, ‘णमो लोए सव साहूणं' इन पदोंके उच्चारण में एक उच्छवास, इसप्रकार नौ बार पूर्ण नमस्कारमंत्रका उच्चारण अथवा अंतर्जल्य करनेसे सत्तावीस उच्छवास हो जाते हैं । इतने ही समयमें आत्मा कायोत्सर्ग करनेसे संसारबंधनको नष्ट करने में समर्थ हो जाता है। इन उच्छवासोंकी विधि, स्वाध्याय, अर्हद्भक्ति आदि सर्वत्र परिगणनीयो है । कायोसर्गमें स्थित होनेपर यदि कोई उपसर्ग देव मनुष्य तिर्यचों द्वारा किया जाय तो उसे सहन करना चाहिये । वेसी अवस्थामें कर्म आत्मासे हटते चले जाते हैं । अंतमें समस्त कर्मों से निमुन होकर आत्मा केवलज्ञान बन जाता है । इसप्रकार इन षट्कर्मों को पूर्णतासे मुनिगण करते हैं, इस लिए उन्हींकी प्रधानतासे इनका उल्लेख किया गया है। गुप्तित्रय सम्यग्दंडो वपुषः सम्यग्दंडतथा च वचनस्य । मनसः सम्यग्दंड गुप्तित्रितयं समनुगम्यं ॥२०२॥ अन्वयार्थ ( वपुषः सम्यग्दंडः ) शरीरको भले प्रकार वशमें रखना, (तथा वचनस्य च सम्यग्दंडः ) उसीप्रकार वचनको भी पूर्णतासे वशमें रखना, ( मनसः सम्यग्दंडः ) मनको भो अच्छी तरहसे वशमें रखना, (गुप्तित्रितयं ) ये तीन गप्तियां ( समनुगम्यं') अच्छी तरह पालन करना चाहिये ।। विशेषार्थ-गुप्ति नाम गोपनका है, अर्थात् छिपानेका है, मन वचन काय इन तीनोंकी प्रवृत्तिको छिपाना चाहिये । इनका पूर्ण छिपाना-संयमित रखना तभी हो सकता है जब कि इन तीनोंकी प्रवृत्ति सर्वथा रोक दी जाय, इसलिए जहां पर कायको निश्चल बना दिया जाता है, वचनसे कुछ भी उच्चारण न करके मौनावलंबनकिया जाता है। मनको ध्यानस्थ लक्ष्यसे भिन्न कहींपर नहीं जाने दिया जाता है वहींपर गुप्तियोंका पालन ५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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