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[ पुरुषार्थसिद्ध पाय
होता है । जहां कुछ अंशोंमें भी तीनों योगोंकी प्रवृत्ति रहती है वहां गुप्तिका पालन नहीं कहा जाता । इसलिए ध्येयमें निमग्न होनेके लिये पूर्ण साधन गुप्तिपालन है । मुनिमहाराज इन्हें पालते हुए ही ध्यानसिद्धि करते हैं।
पंच समिति
सम्यग्गमनागमनं सम्यग्भाषा तथैषणा सम्यक । सम्यग्ग्रहनिक्षेपौ व्युत्सर्गः सम्यगिति समितिः॥२०३॥ अन्वयार्थ-( सम्यग्गमनागमनं ) अच्छी तरह पृथ्वीको एवं जीवों के संचारको देखकर कहीं जाना और आना (साम्यभाषा) हित मित सत्य बोलना (तथा सम्यक् एषणा) और भले प्रकार निरंतगय भोजन ग्रहण करना (सम्यकग्रहनिक्षेपौ) उत्तम रीतिसे-जीवों के संचारको देख भालकर वस्तुओंका उठाना और धरना ( सम्यक व्युत्सर्गः ) जीवबाधारहित-निर्जीव पथ्वीमें मलमूत्र क्षेपण करना ( इति समितिः ) इसप्रकार इन पांच समितियोंका पालन करना चाहिये ।।
विशेषार्थ-ईर्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेपण, व्युत्सर्ग ये पांच समितियां हैं । इनके विना पाले मुनिलिंग दूषित होता है, इनका पालन करना मुनियोंके लिये अत्यावश्यक है । जहां तक दृष्टिकी पूर्ण निरीक्षणता हो सकती है वहींतक पृथ्वीको सावधानीसे देखकर आगे चलना चाहिये, ऐसा पूर्ण निरीक्षण चार हाथ हो सकता है इसलिये चार हाथ पृथ्वीको देखकर चलना ईर्यापथ गमन कहलाता है । हित मित साधु बोलना भाषा समिति कहलाती है, निरंतराय शुद्ध भोजन ग्रहण करना एषणा समिति कही जाती है । देखकर शास्त्र पीछी कमंडलु उठाना और देखकर ही उन्हें रखना अदाननिक्षेपण समिति कही जाती है तथा देखकर निर्जीव स्थान में मल मूत्र क्षेपण करना व्युत्सर्ग समिति कही जाती है । इन पांच समितियोंको मुनिमहाराज तो सर्वथा पालनमें समर्थ हैं परंतु श्रावकको भी उनका एकदेश पालन करना चाहिये । समितियोंके पालन करनेसे बहुत कुछ जीववधके पापोंसे निवृत्ति हो सकती है ।
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