Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 433
________________ ४१४ ] पुरुषार्थ सिद्धच पाय ] मुनियों में होते हैं परन्तु चौथे काल के मुनियों के वजू वृषभ नाराचसंघनन होता था । उससे वे घोर तपश्चरण पहाड़ों नदियों के किनारे और निर्जन वनों में सिंहादि के बीच करते थे और उसी भव से मोक्ष जाते थे । आजकल के मुनि हीन संघनन होने के कारण उतना तपश्चरण करने की सामर्थ नहीं रखते हैं और जंगलों और पहाड़ों पर भी नहीं रह सकते हैं । इसलिये पूर्वाचार्यों ने वर्तमान मुनियों को नगर में उद्यान में धर्मस्थान में मंदिर में रहने का विधान किया है । परन्तु उनकी चर्या, विशुद्ध चारित्र और निष्परिग्रह समता आदि गुण वर्तमान मुनियों में भी वे ही हैं जो चौथे काल के मुनियों में गये जाते हैं । हीन संहनन होने के कारण उसी भव से मोक्ष जाने की सामर्थ उनमें नहीं है इसलिये वर्तमान मुनियों में शुद्धोपयोग की पूर्ण पात्रता प्राप्त करने की योग्यता और पात्रता नहीं है | फिर भी वर्तमान के मुनिराज चतुर्थ काल के मुनियों के समान ही पूज्य एवं वंदनीय है श्राक्कों का यह सौभाग्य है कि ऐसे देशकाल में जो विरोधी हैं फिर भी नग्नदिगम्बर साधु निर्भय होकर सर्वत्र विहार कर रहे हैं और श्रावकों को त्याग मार्ग का उपदेश देकर उनका कल्याण कर रहे हैं । जो जैनेतर राष्ट्र के मनुष्य है उन्हें भी सन्यार्ग एवं न्यायमार्ग में लगाने हैं अनुसूचित एवं दलित वर्ग से मांस मदिरा चोरी जुआ आदि का त्याग करा कर उनका भी परम हित कर रहे हैं । आचार्य सोमदेव ने कहा है काले कलौ घले चित्ते देहे चान्नादि कीटके । रामच्चित्रं यदद्यापि जिन रुपधराः नराः ॥ अर्थ- आज कलिकाल है जिसमें धर्म से विमुख लोग शिथिला चारी और धर्म और धार्मिकों को बाधा पहुँचाते हैं। लोगों के चित्त भी चलायमान रहते हैं जिससे दृढ़ता से धर्म नहीं पालते हैं । और शरीर भी अन्न का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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