Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 410
________________ पुरुषार्थसिद्धयुपाय [ उपवास हैं उसे त्रयोदशी आदि तिथियों में भी करते हैं, यह अनागत प्रत्याख्यान कहलाता है । अर्थात् पर्व के नहीं आने पर भी चतुर्विध आहारका परित्याग कर दिया जाता है । चतुर्दशी आदि पत्र में उपवास कर लिया है फिर चतुर्दशी आदि पत्रके निकलने पर पूर्णिमा आदि तिथियोंमें भी जो उपवास करते हैं यह अतिक्रांत प्रत्याख्यान है । अर्थात् पर्व के अतिक्रांत-वीतने पर भी जो चार प्रकारके आहारका परित्याग कर देना वह अतिक्रांत प्रत्याख्यान है । प्रतिदिन यह संकल्प करना कि यदि स्वाध्यायकी समाप्ति करने पर सामर्थ्य होगी तो उपवास ही कर डालूगा, यदि सामर्थ्य नहीं होगी तो नहीं करूंगा, इसप्रकाकार संकल्प करना कोटीयुत प्रत्याख्यान है । सामर्थ्य का निरीक्षण करके जो पंद्रह दिन एक महीना आदिका उपवास धारण कर लिया जाता है वह अखंडित प्रत्याख्यान कहलाता है । सर्वतोभद्र कनकावली आदि विशेष व्रतविधानोंमें उपवासका धारण करना सोकार प्रत्याख्यान कहलाता है । जो स्वेच्छापूर्वक कभी भी उपवास धारण किया जाता है वह निराकार प्रत्याख्यान कहा जाता है । कभी छह दिनका उपवास धारण करना, कभी आठ दिनका, कभी दश दिनका इसप्रकार कालका परिमाण करके जो उपवास धारण किया जाता है वह परिमाण प्रत्याख्यान कहा जाता है । जो यावज्जीव चतुर्विध आहार का परित्याग किया जाता है वह इतरत् प्रत्याख्यान कहा जाता है । मार्ग में गमन करते समय, नदी जंगल आदिमें दीक्षा लेते हुए उपवास धारण कर लेना वर्तनीयात प्रत्याख्यान कहा जाता है । किसी उपसर्गके उपस्थित होने पर अथवा अंतरायविशेषके उपस्थित होनेपर जो उपवास धारण कर लिया जाता है वह सहेतुक प्रत्याख्यान कहलाता है । इसप्रकार दश भेदोंसे प्रत्याख्यान किया जाता है । कायोत्सर्गव्युत्सर्ग पर्यायवाची शब्द हैं। जिसमें शरीरसे ममत्व छोड़कर किसी आसन विशेषसे ध्यान किया जाता है वह कायोत्सर्ग कर्म कहा जाता है । मोक्ष की Jain Education International [ ३६१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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