Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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[ पुरुषार्थसिद्धय पाय
शंकाका उत्तर इसप्रकार है-ऊपर पात्रोंका वर्णन आ रहा है, पात्रोंको दान करुणाबुद्धिसे नहीं दिया जाता किंतु धर्मबुद्धिसे भक्रिपूर्वक दिया जाता है। धर्मायतनोंमें भकिबुद्धि ही रखने का विधान है । परन्तु जो पात्र नहीं हैं कुपात्र हैं वहां भी भकिभाव रक्खा जाता है । यद्यपि कुपात्रों में भक्वित्रुद्धि नहीं रखना चाहिये कारण वे वास्तवमें धर्मसे रहित हैं, परन्तु उनके सम्यग्दर्शन है या नहीं है इस बातकी पहचान छद्मस्थ पुरुष नहीं कर सकते, इसलिये उन्हें पात्र ही समझते हैं, वैसी अवस्थामें उनका भक्ति करना आवश्यक हो जाता है क्योंकि पात्रोंमें भक्ति-विनय नहीं रक्खी जायेगी तब भी अधर्म होगा और कुपात्रोंका चारित्र-व्रताचार वाह्यमें पात्रोंके समान ही रहता है इसलिये वहां तो भकिबुद्धिसे श्रावक दान देता है परन्तु जो प्रत्यक्षमें अपात्र दीख रहे हैं उनमें भक्तिबुद्धि तो हो नहीं सकती क्योंकि भक्ति वहीं होती है जहां धार्मिक भाव है, जिस गृहीतामें धार्मिकभाव नहीं है उसमें दाताका भक्तिरूप परिणाम कभी नहीं हो सकता और न होना ही चाहिये । इसलिये उसी भक्तिबुद्धिके वर्णनके कारणसे अपात्रोंको दान देनेका निषेध किया गया है । यदि भक्तिबुद्धिकी अपेक्षा नहीं रक्खी जाय केवल उनके कष्टनिवारणकी इच्छा रखी जाय तब उन्हें-अपात्रोंको दान देना चाहिये, वह दान करुणाबुद्धिसे दिया कहा जायेगा । अर्थात् दुःखी क्षुधातुर अनाथ आदि जितने भी अपात्र हैं उन्हें भी दया परिणामोंसे अवश्य दान देना चाहिये। वे धर्मसे शून्य होनेसे धर्मपात्र नहीं हैं किंतु विचारे दयाके पात्र हैं, जो पुरुष किसी प्रकार दुःखी नहीं हैं हरप्रकारसे समर्थ हैं, सुखी हैं, ऐसे अपात्रोंको दान देकर सुफल चाहना समुद्रमें बीज डालकर उससे फल लेनेकी इच्छा करनेके समान हास्यास्पद है । इसलिये पात्र अपात्रकी पहिचान कर ही दान देना चाहिये ।
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