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पुरुषार्यसिद्धयुपाय]
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करनाभाव सामायिक है । अथवा दूसरी प्रकारसे भी इन्हीं नाम स्थापना आदि सामायिकोंका स्वरूप है वह इस प्रकार है-जाति द्रव्य क्रिया गुण इनमेंसे किसी की अपेक्षा नहीं करके सामायिक शब्दसंज्ञा रखना नामसामायिक है। जो पुरुष सामायिक आवश्यकमें परिणत है वह तदाकार अथवा अतदाकार पदार्थमें गुणोंका आरोपण करै वहस्थापना सामायिक है । जो वस्तु भविष्यमें जिस रूपको धारण करनेवाली है अथवा भूतकाल में वैसारूप धारणकर चुकी है उसका सामायिक होना द्रव्य मामायिक है। अर्थात् भूत भविष्यत्कालमें वर्तमान रूप धारण करनेवाली वस्तुमें वर्तमान रूप देकर रागद्वष छोड़ साम्यभाव धारण करना द्रव्यसामायिक है । यह द्रव्यसामायिक दो प्रकार है-एक आगम द्रव्यसामायिक एक नो आगम द्रव्यसामायिक । सामायिक के वर्णन करनेवाले शास्त्रों का ज्ञाता आत्मा जिससमय उन शास्त्रों में अनुपयुक्र है उम समय वह आगम द्रव्यसामायिक कहने योग्य है। नो आगम द्रव्य सामायिक के तीन भेद हैं-सामायिक वर्णनवाले शास्त्रों का ज्ञाता आत्माका शरीर , भावि जीव और तद्वयतिरिक्त । उनमें ज्ञाता का जो शरीर है वह भी तीनप्रकार है- भूतशरीर , भाविशरीर और वर्तमानशरीर । अर्थात् सामायिक शास्त्रों के जाननेवाले आत्मा का वर्तमानशरीर और उसीका भूतशरीर और उसीका भाविशरीर ऐसे तीन भेद ज्ञातृशरीरके हैं। उन तीनोंमें जो भूतशरीर है उसके भी तीन भेद हैं- च्युत च्यावित और त्यक्त । जो शरीर पके हुए फलके समान अपने आप ही आयुके क्षय होनेपर आत्मासे पृथक हो जाय वह च्युतज्ञातृशरीर है । जो कदली घात से आत्मा से पृथक किया जाय वह च्यावितशरीर कहलाता है । त्यक्तशरीरके फिर तीन भेद हैं-भक्त प्रत्याख्यान, इंगिनीमरण । उनमें भक्त प्रत्याख्यानके भी तीन भेद है उत्तम मध्यम जघन्य । उत्कृष्ट भक्त त्यागका प्रमाण बारह वर्ष है । जघन्यका
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