Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 383
________________ [पुरुषार्थसिद्धध पाय प्रवलतासे मनमें कामविकार उत्पन्न होता है । वैसी दशामें व्रतका पालन पूर्णतया नहीं हो पाता इसलिए व्रती पुरुषों के लिये अतिगरिष्ठ एवं पौष्टिक पदार्थों का निषेध किया गया है, जो पदार्थ विकार उत्पन्न करनेवाले हैं एवं इंद्रियोंको प्रवल बनानेवाले हैं वे सव व्रतियोंको नहीं सेवन करने चाहिये । किंतु जिन पदार्थोके सेवनसे शरीरकी तो रक्षा होती हो, भूख मिटती हो परंतु विकारभाव-प्रमाद नहीं आता हो ऐसे सात्त्विक हलके पदार्थ ही सेवन करने चाहिये । इसप्रकारके हलके निर्दोष सात्त्विक पदार्थों का सेवन करनेवाला पुरुष इंद्रिय और मनपर सहज ही विजय कर लेता है। अभिषवमें द्रवीभूतपदार्थ-खीर सौवीर आदि भी लिये जाते हैं और स्वादिष्ट लड्डू गुलाबजामुन इमरती आदि इंद्रियोंको अधिक लोलुप बनाने वाले पदार्थ भी लिये जाते हैं । इनके सेवनसे अधिक पदार्थ गृद्धतासे खाए जा सकते हैं वैसी दशामें शरीर विकारसे वतभंग होने की संभावना रहती है इसलिए अधिक स्वादु पदार्थ भी वृतियों को नहीं खाना चाहिये । एक प्रकारसे इन बातों को रोकना वतरक्षाके लिये बाढ़ लगाना है यदि इन्हें न रोका जाय तो इंद्रियसमूह व्रतोंका भंग करने में समर्थ हो जाती हैं इसीलिये इन उपयुक्त पदार्थों को अतीचार दोष कहा गया है । अतिथिसंविभागवतके अतीचार परदातृव्यपदेशः सचित्तनिक्षेपतत्पिधाने च । कालस्यातिक्रमणं मात्सर्य चेत्यतिथिदाने ॥१६४॥ अन्वयार्थ - ( परदातृव्यपदेशः ) दसरे को दान देनेकी कह देना, ( च सचित्तपतत्पिधाने ) और सचित्त पदार्थ में रखकर भोजन देना, सचित्त ढका हुआ भोजन देना, ( कालस्यातिक्रमणं ) कालका अतिक्रमण कर देना, ( च मात्सर्य' ) और मत्सरभाव ईर्ष्याभाव धारण करना, अथवा अगदरसे देना, ( इति अतिथिदाने ) इसप्रकार पांच अतीवार अतिथिदानव्रतमें विशेषार्थ -जिस समय अतिथि-साधु तपस्वी भोजनके लिये घरपर आ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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