Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुरुषार्थसिद्धय पाय }
जिससमय वह भोग्य वस्तुओं के परिमाणमें सचित्तका त्याग कर देता है उससमय सचित्त, सचित्तसंबंधित आदि सभी अतीचार समझे जाते हैं । परंतु पांचवीं - सचित्तत्याग प्रतिमा में तो आवश्यक त्याग हो जाता है, वहां पर कभी किसी पदार्थका सचित्त भक्षण नहीं किया जा सकता, वहां सचित्त का सर्वथा त्याग हो जाता है । इतना विशेष है कि वह त्याग केवल खाने पीनेके विषयमें है । जो लोग सचित्तत्याग प्रतिमामें सचित्तका सब प्रकार से ग्रहण करना वाह्यस्नानादिकमें भी निषिद्ध बतलाते हैं वे उस प्रतिमा के स्वरूपकी यथार्थताका लोप करते हैं । कारण इसप्रकारकी खींचसे कोई व्रत कभी पूरा ही नहीं कहा जा सकता । स्वामी समंतभद्राचार्यने जहांकहीं इस पांचवीं प्रतिमाका स्वरूप बतलाया है वहां उन्होंने केवल आहार्यआहार करनेयोग्य पदार्थों का ही ग्रहण किया है । इसलिए उसमें बाह्यउपयोग में आनेवाले सचित्त पदार्थों का निषेध नहीं होता ।
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ा ३५७
दूसरी विशेष बात यह है कि भोगोपभोगपरिमाणनतके जो अतीचार बतलाये गए हैं उनमें भोग्य और उपभोग्य दोनों पदार्थ संबंधी अतीचार गिनाने चाहिये, परंतु यहांपर केवल भोग्य पदार्थोंके ही गिनाये हैं, उपभोग्यसंबंधी नहीं गिनाये हैं । इसका एक तो यह हेतु है कि अधिक विशुद्ध खाद्यपदार्थों की मर्यादासे प्राप्त होती है, वाह्य उपभोग्य पदार्थों की मर्यादा भी विशुद्धि को बढ़ानेवाली है परंतु जितनी विशुद्धिकी हानि भक्षण से होती है उतनी बाह्य सेवनसे नहीं होती, इसलिए इस व्रतको मर्यादा में विशेष विशुद्धिका लक्ष्य रखकर भोग्य वस्तुओं के अतीचार ही गिनाये गये हैं । दूसरा हेतु यह है कि आगे आठवीं और नवमी प्रतिमा के पीछे केवल भोग्यपरिमाण ही प्रधानताते रह जाता है उपभोग्यका तो परिमाण परिग्रहत्यागप्रतिमा में विशेष रीतिसे हो जाता है परंतु वहां भोग्य का कुछ परिमाण नहीं होता इसलिए वहां भोगोपभोगपरिमाणत की दृष्टि से भोग्य पदार्थों के अतीचारोंपर ही विशेष लक्ष्य रह जाता है। वाह्य पदार्थों का
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