Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 375
________________ ३५६ ] भोगोपभोगपरिमाणव्रत के अतीचार आहारी हि सचित्तः सचित्तमिश्रः सचित्तसंबंधः । दुःपकवाभिषवोपि च पंचामी पष्ठशीलस्य ॥ १६३॥ [ पुरुषार्थसिद्धपः अन्वयार्थ - (हि) निश्वयसे ( सचित्त आहार : ) सचित आहार - चित्त नाम जीवका है, जीवसहित आहारको सचित आहार कहा जाता है ( सवित्तमित्रः ) सचितसे मिला हुआ आहार [ सचित्तसंबंध: ] सचित्त से संबंध रखनेवाला आहार [ दुःपक्त्रः ] अच्छी तरह नहीं पाचन किया हुआ आहार [ च अभिषवोपि ] और पुष्ट गरिष्ठ आहार [ अमी पंच ] ये पांच अतीचार [ षष्ठशीलस्य ] छठे शोलके अर्थात् भोगोपभोग परिमाणत्रत के हैं Jain Education International पाय विशेषार्थ - जो भोज्यवस्तु जीवसहित हो वह भोगोपभोगपरिमाणबूती को नहीं सेवन करनी चाहिये कारण व्रतका विधान जीवरक्षा के लिये ही होता है, फिर भी वाह्यरक्षा के सिवा खाद्यवस्तुओं में विशेषकर जीवरक्षाका ध्यान रक्खा जाता है । इसलिये भोगोपभोगपरिमाणबूती के पंचम प्रतिमासचित्तत्यागप्रतिमाका आवश्यक पालन नहीं होनेपर भी सचित्तके त्यागका विधान बतलाया गया है । भोगोपभोगपरिमाणबूत दूसरी ही प्रतिमा में हो जाता है इसलिए उसके सचित्तत्याग आवश्यक नहीं है, क्योंकि वह पांचवीं प्रतिमाका कार्य है । फिर भी आवश्यक क्यों कहा गया और सचित ग्रहणको अतीचारतकमें सम्हाला गया ? इसका समाधान यह है किभोगोपभोगपरिमाणवूनी दूसरी प्रतिमावाला है, इसलिए उसके सदैव सचित्त त्यागका विधान नहीं बतलाया गया है, किंतु भोगोपभोगका समय समयपर नियत कालके लिये जो मर्यादा करे उसमें भोग्यपदर्थों में सचित्त ग्रहण नहीं करे, क्योंकि यह व्रत अपने सेवन उपयोग में होनेवाली हिंसा के त्यागके लिये है । इसलिए स्वामी समंतभद्राचार्यने रत्नकरंड श्रावकाचार में बतलाया है कि जिन पदार्थों के सेवन करने से स्वल्प तो फल - स्वाद आता हो और जीवविघात अधिक होता हो, ऐसे पदार्थ-कंदमूल, मूलकंद, अदरख, नीम, केतकी, पुष्प इत्यादि जो हरे हों उनको छोड़ना चाहिये । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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