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[ पुरुषार्थसिद्ध पाय
आदि वस्तुओंको बिना देखे और बिना झाड़े पोंछे ही उठाकर काम में ले लेना, यह अनवेक्षित अप्रमार्जित आदान नामका अतीचार है । इसीमें शरीरके ओढ़ने पहननेके वस्त्रादि भी बिना देखे बिना झाड़े-पीछे लिये जाय वे भी गर्भित हैं ।
दूसरा अतीचार - अनवेक्षित अप्रमार्जित संस्तरोपक्रम है; उसका यह अभिप्राय है कि शिथिलतावश सोनेकी चटाई शीतलपट्टी आदि जो त्रिस्तर और बैठनेकी आसन आदि वस्तुए हैं, बिना देखे बिना झाड़े-पीछे बिछा देना ।
तीसरा अतीचार-अनवेक्षित अप्रमार्जित उत्सर्ग है; उसका अर्थ यह है कि बिना देखी बिना साफ की हुई जमीनपर मलमूत्र कफ थूक आदि डाल देना ।
चौथा अतिचार - स्मृत्यनुपस्थान है; इसका अर्थ यह है कि प्रोषधोपवास दिनको एवं उसकी विधि आदिको भूल जाना ।
पांचवां अतीचार- अनादर है, अर्थात् प्रोषधोपवास में भोजनका त्याग होनेसे एवं शिथिलता आजानेसे पूर्ण आदरभाव नहीं रखना किंतु उपेक्षा भावसे उसे पालना ।
ये पांच अतीचार प्रोषधोपवासव्रतमें दोष पैदा करते हैं, क्योंकि बिना देखेभाले किसी वस्तुको धरा उठाया जायेगा तो पूरी संभावना है कि उस वस्तुपर रहनेवाले जीव अथवा धरने उठानेको जमीनपर रहनेवाले जीव मर जायगे | इसीप्रकार विस्तर या आसनको बिना देखेभाले या जमीन को बिना देखेभाले बिछा देने से वहांके जीवोंका ध्वंस होना सहज है । जिस भूमिपर जीव हैं उसपर मलमूत्रादि डालने से भी जीवोंका बचना कठिन है इसलिये इन तीनों बातोंको अतीचारों में लिया गया है । इन तीनों में प्रत्येक के साथ अनवेक्षित अप्रमार्जित विशेषण लगाना चाहिये,
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