Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुरुषार्थसिद्धथ पाय ]
[ १४३ mammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm सके । परन्तु सम्यग्दृष्टिके वह सामर्थ्य प्रगट हो जाती है जिसमें ज्ञानावरणका विशेष क्षयोपशम हो जाता है, वह परवादियोंको शास्त्रार्थमें परास्त कर देता है, अनेक ग्रन्थोंकी रचना करता है । वस्तुओंकी सूक्ष्मगवेषणा ( खोज ) करता है । परन्तु जिसका क्षयोपशम अत्यंत मंद है वह यह भी नहीं जान पाता कि शास्त्रार्थ किसे कहते हैं और ग्रन्थ नाम किस वस्तुका है । जिसके मन होता है वही हिताहितका विचार कर सकता है, जिसके मन नहीं है वह असैनी कुछ नहीं विचार कर सकता । जिसके नेत्रंद्रियावरण नामका क्षयोपशम है वही नेत्रोंसे देख सकता है, जिसके वैसा क्षयोपशम नहीं है वह देखने में असमर्थ रहता है । जिसके वीर्यांतरायकर्मका क्षयोपशम होता है, वही पराक्रमी होता है, वही रणमें बहुसंख्यक सैनिकों को अकेला ही परास्तकर विजयी होता है । जिसके वीर्यांतरायकर्मका क्षयोपशम प्रगट नहीं है वह युद्धका नाम सुनकर घरमें ही कंपायमान होता है । इन दृष्टांतोंसे यह बात सिद्ध होती है कि जिसप्रकार आत्माओंमें शनियां प्रगट हो जाती हैं, उसीप्रकार उनके कार्य उनमें देखने में आते हैं। जिनमें सामर्थ्य प्रगट नहीं होती, वे उन कार्यों से वंचित रहती हैं। यही बात सम्यक्त्वभावके विषयमें है । जिनके वह प्रगट हो चुका है उनमें पदार्थों की-जिनमतकी यथार्थ श्रद्धा पायी जाती है, वे सदा अटलश्रद्धालु रहते हैं । जिनमें सम्यक्त्वभाव जागृतनहीं है वे उस तत्त्व तक पहुंच नहीं सकते । यह एक वस्तुस्वभाव है
कोई कोई ऐसा भी कहते हुए देखे जाते हैं कि 'किसीको किसी बातका श्रद्धान कराना उसकी उन्नतिको रोक देना है । जैसे बालकको यह विश्वास करानेकी आवश्यकता नहीं है कि यह अग्नि है, बालक स्वयं छूकर एवं झुलसकर उसका ज्ञान कर लेगा। छूकर अथवा जलकर अग्निका ज्ञान करना बालकके लिये अनुभवका मार्ग खोल देना हैं, अन्यथा अग्निका वह कोरा श्रद्धान ही लिये बैठा रहेगा । अग्नि कैसी क्या होती
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