Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
बड़ा उपकार बिच्छेद करनेका कृतघ्न आत्माअपने ज्ञानमें
१७६ ]
[पुरुषार्थसिद्धय पाय mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm इसलिये ज्ञानको कभी नहीं छिपाना चाहिये । अहो ! ज्ञानको छिपाकर क्या आत्माके गुणोंको फिरसे कर्मों द्वारा ढकना चाहते हो ? कठिनतासे तो कथंचित् उनका विकाश हुआ है, इसलिये प्रकाशमें लाकर उसकी वृद्धि करना ही बुद्धिका सदुपयोग है । इसीप्रकार ज्ञानदान करानेवाले अथवा तत्त्वबोध करानेवाले विद्या-गुरुओंका नाम भी नहीं छिपाना चाहिये । गुरुका नाम छिपानेसे कृतघ्नताका दोष आता है । सज्जन पुरुषोंका कर्तव्य है कि वे किये हुए उपकारको भूलें नहीं । सबसे बड़ा उपकार ज्ञानदान है, जिसने सम्यग्ज्ञानका दान किया है उसने अनंतसंसारका विच्छेद करनेका मार्ग दिखाया है। ऐसे महान् उपकारीका नाम छिपाना अत्यंत कृतघ्न आत्माओंका कार्य है । दूसरी बात यह है कि गुरुका नाम छिपानेसे अपने ज्ञानमें प्रमाणीकता नहीं आती है; इसलिये गुरुका नाम कभी गोपन नहीं करना चाहिये । इसीप्रकार जिन शास्त्रोंसे अध्ययन किया हो उनका नाम तथा उनके रचयिताओंका नाम भी नहीं छिपाना चाहिये । इसीका नाम अनिह्नवाचार है । इसप्रकार (१) कालाचार (२) विनयाचार (३) शब्दाचार (४) अर्थाचार (५) उभयाचार (६) बहुमानाचार (७) उपधानाचार (८) अनिवा चार, ये सम्यग्ज्ञानके आठ अंग हैं । इनका पालन करना नितांत आवश्यक और परमोपयोगी है। इसप्रकार आचार्यवर्य श्रीअमृतचंद्रसूरि-विरचित 'पुरुषार्थसिद्धयुपाय' द्वितीयनाम जिनप्रवचनरहस्यकोषकी वादीभकेशरी न्यायालङ्कार पं० मक्खनलालशास्त्री-कृत भव्यबोधिनी नामक हिन्दीटीकामें सम्यग्ज्ञानका वर्णन करनेवाला द्वितीय अधिकार समाप्त हुआ ।। २ ।।
सम्यक्चारित्र धारण करनेयोग्य पुरुष
विगलितदर्शनमोहैः समंजसज्ञानविदिततत्त्वार्थः । नित्यमपिनिःप्रकंपैःसम्यक्चारित्रमालंव्यं॥३७॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org