Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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[ पुरुषार्थसिद्धय पाय
विशेषार्थ-इन पांचों वृक्षोंके फलोंमें त्रस जीव साक्षात् उड़ते देखे जाते हैं तथा और भी सूक्ष्म जीव बहुत होते हैं जो नहीं देख पड़ते इसलिये हिंसासे बचने वालोंको इन पांचों ही फलोंके भक्षणका त्याग कर देना उचित है।
पञ्च उदुबर सूखे भी अभक्ष्य हैं यानि तु पुनर्भवेयुः कालोच्छिन्नवसाणि शष्काणि । भजतस्तान्यपि हिंसा विशिष्टरागादिरूपा स्यात् ॥७३॥
अन्वयार्थ ---[ पुनः ] फिर [ यानि ] जो फन [ शुष्कागि तु ] सूखे हुए भी [ कालोच्छिन्नत्राणि ] काल पाकर त्रस जीवों से रहित हो जाय [ तानि अपि ] उनको भी [ भजतः ] सेवन करनेवालको [ विशिष्टरागादिरूपा] विशिष्ट रागादि रूप [ हिंमा स्यात् ] हिंसा होती है।
विशेषार्थ- जो लोग यह विचारकर कि सूखे फलों में तो त्रस जीव नहीं रहते उनके भक्षण करने में क्या दोष है ? सूखे फलोंको भक्षण करने लगें तो आचार्य उनके लिये भी निषेध करते हैं कि जो फल सूख जाते हैं और काल पाकर उनमें से त्रस जीव नष्ट हो जाते अथवा बाहर निकल जाते हैं ऐसे सूखे हुए फल भी नहीं खाना चाहिये, कारण कि उनके खानेमें एक विशेष रागरूप परिणामोंकी उत्पत्ति होती है। बिना तीव रागके उनके सुखानेके लिये परिणाम भी नहीं हो सकते । जब कि उन फलोंमें तीव्र गृद्धता या रागविशेष होगा तभी उन त्रस जीवोंके घररूप फलोंको सुखानेके लिये प्रेरित परिणाम होंगे वैसी अवस्थामें तीव्र रागजनित भावहिंसा होती ही है । दूसरी बात यह भी है कि जो फल त्रस जीवों की योनिभूत हैं, ऐसे फलों को सुखाने से वे त्रस जीव क्या सभी बाहर ही निकल जाते हैं ? अनेक उसी फलमें गरमीसे मरकर रह जाते हैं, सूक्ष्म होनेसे दीखते भी नहीं हैं और फलके समान रंग होनेसे भी नहीं दीखते । वैसी अवस्थामें उनफलोंका सेवन त्रस जीवोंके कलेवरकाभक्षण है।
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