Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुरुषार्थसिद्धय पाय )
और किसी काममें नहीं आ सकती, इसलिए इन मारने बांधनेवाले हिंसाके उपकरण-हिंसाकी सामग्रीको दूसरोंको दे देनेसे व्यर्थ ही उनसे की जानेवाली हिंसाका भागीदार बनना पड़ता है । बहुतसे लोग ऐसे देखे जाते हैं जो चूहोंको पकड़नेवाले पीजरोंको घर घर पहुंचाते हैं, बहुतसे मक्खियां मच्छर जूआं बिच्छू बर्र आदि विषैले जीवोंके मारनेवाले विषैले पदार्थों का प्रयोग बतलानेके साथ स्वयं अपने पाससे वे चीजें दे देते हैं । वहुतसे किन्हीं जीवोंको ध्वंस करनेके लिये अपने यहांसे अग्नि दे देते हैं । इत्यादिरूपसे जो प्रवर्तन करते हैं वह सब हिंसादान नामा अनर्थदंड है इसलिये ऐसे बिना प्रयोजनके हिंसादानका त्याग करना हिंसादानअनर्थदंडत्यागवत है। साक्षात् जीवोंकी जान लेनेवाले इन प्रयोगोंसे जहांतक हो प्रयत्नपूर्वक बचना चाहिये ।
दुःश्र ति-अनर्थदंडव्रत रागादिवर्धनानां दुप्टकथानामबोधबहुलानां ।
न कदाचन कुर्वीत श्रवणार्जनशिक्षणादीनि ॥१४५।। अन्वयार्थ-( रागादिवर्धनानां ) रागादिको बढ़ानेवाली ( अबोधबहुलानां ) अज्ञानसे भरी हुई ( दुष्ट कथानां ) दुष्ट कथाओंका ( श्रवणार्जनशिक्षणादीनि ) सुनना सुनाना पढ़ना पढ़ाना आदि ( कदाचन ) कभी भी ( न कुर्वीत ) नहीं करना चाहिये ।
विशेषार्थ-दुःश्रुति नाम खोटी खोटी बातोंके सुनने सुनानेका नाम है अर्थात् जिन बातोंके सुननेसे रागद्वपकी वृद्धि होती हो जैसे शृंगाररसके बढ़ानेवाली कथायें, युद्धकी बातें, भोजनकी कथायें, राजाओंकी बातें, देशकी बातें, जिन बातोंके सुनने सुनानेसे बिना प्रयोजन रागद्वष बढ़ता हो, उपन्यासादि झूठे किस्से कहानियांका पढ़नापढ़ाना, झूठे शास्त्रोंका सुननासुनाना दूसरोंको उनकी शिक्षा देना आदि सब दुष्ट कथायें कहलाती हैं, इन कथाओंसे पुण्यात्रव नहीं होता किंतु पापास्रवकी वृद्धि होती है । कथायें और जीवनचरित्र वे ही सुनने चाहिये जिनसे अपने जीवनमें कुछ शांति मिलती हो एवं
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