Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुरुषार्थासद्धय पाय ]
[ ३०६
भोग्य और उपभोग्य पदार्थ परिग्रहपरिमाणवतमें वह रख चुका है उनका भी यथाशक्ति त्याग कर देना उचित है अर्थात् अत्यावश्यक ही रखना चाहिये । जो कुछ भी अधिक प्रतीत होते हैं उन सबको छोड़ देना ठीक है क्योंकि आत्माका स्वरूप निवृत्तिस्वरूप है और उस मार्गकी सिद्धि संयमसे हो सकती है बिना भोग्य और उपभोग्य वस्तुओंके छोड़े संयमका पलना अशक्य है इसलिये जहांतक अपनी सामर्थ्य हो वहांतक उन्हें छोड़ देना ही ठीक है ।
भोग पदार्थों में वे पदार्थ समझे जाते हैं जो एकबार भोग लेनेपर फिर भोग करने में नहीं आते । जैसे-रोटी दाल भात दूध घी चूर्ण पुष्प तेल आदि जितनी खानेकी और सूघने एवं शरीरमें लेप करनेकी चीजें हैं वे सब भोग्य वस्तुयें हैं । तथा जो एक बार भोगमें आने के पश्चात् फिर भी वे ही भोगने में आवें ऐसी वस्तुयें उपभोग्य वस्तुयें कही जाती हैं । जैसे-वस्त्र, वर्तन, मकान, हाथी, घोड़ा, स्त्री, दास, दासी, सोना, चांदी, खेत, सवारी आदि । ये समस्त वस्तुयें एकबार काम में आनेपर छोड़ नहीं दी जाती किंतु बार बार काममें आती हैं, इन समस्त वस्तुओं की भोगोपभोगका परिमाण करनेवाला बहुत कुछ घटा देता है । केवल अनिवार्य काममें आने लायक ही रखता है ।
अनन्तकायत्यागका उपदेश एकमपि प्रजिघांसुः निहन्त्यनंतान्यतस्ततोऽवश्यं । करणीयमशेषाणां परिहरणमनंतकायानां ॥१६॥
अन्वयार्थ-[ यतः एकं अपि प्रजिघांसुः ] क्योंकि एक भी अनंतकायसे भरे हुये पिंडको जो नष्ट करनेकी इच्छा करता है वह [अनंतान् निहंति ] अनंत जीवोंको मार डालता है [ ततः । इसलिये [ अशेषाणां अनंतकायानां ] समस्त अनंतकायवाले पदार्थों का [ अवश्यं परिहरणं करणीयं ] अवश्य त्याग करना चाहिये।
विशेषार्थ-वनस्पतिके दो भेद हैं-एक साधारणवनस्पति, दूसरी प्रत्येक
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