Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 336
________________ पुरुषार्थसिद्धय पाय } कहलाते हैं । ये सभी उद्दिष्ट भोजनके त्यागी हैं, बुलानेपर भी श्रावकके यहां भोजनार्थ नहीं आते हैं किंतु २-४-८ दिन पीछे या कभी कभी प्रतिदिन बिना बुलाये स्वयं श्रावकके दरवाजेपर जाते हैं । ऐसे अतिथियों को दान देनेका अवसर किसी विशेष पुण्यके उदयमें ही श्रावकोंको मिलता है। दान देनेकी विधि संग्रहमुच्चस्थानं पादोदकमर्चनं प्रणामं च । वाक्कायमनःशुद्धिरेषणशुद्धिश्च विधिमाहुः ॥१६८॥ अन्वयार्थ- [ संग्रहं ] उत्तम पात्रों का भले प्रकार समीचीनरीतिसे ग्रहण करना, इसीका नामप्रति ग्रहण-पडगाहन भी हैं [उच्चस्थान] उन्हें ऊंचा आसन देना [पादोदकं ] उनकै पाद प्रक्षालन करना [अर्चनं! उनकी पूजा करना [च प्रणाम] और प्रणाम करना [वाकायमनःशुद्धिः] वचनशुद्धि रखना. कायशुद्धि रखना, मनःशद्धि रखना [ च एषणशुद्धिः ] और एषणाशद्धि रखना अर्थात् भोजनकी शुद्धि रखना [ विधिं आहुः ] इनको दान देनेकी विधि कहते हैं। ___ विशेषार्थ-जिस समय अतिथि भोजनके लिये दरवाजेपर आवें उस समय भकिवश दान देनेकी इच्छा रखनेवाला श्रावक उनका प्रतिग्रहण करे अर्थात उनके सन्मुख खड़ा होकर बड़े विनयके साथ यह उच्चारण करे कि यहां पधारिये पधारिये स्वामिन् ! अन्नजल शुद्ध है' इसप्रकार पड. गाहन करे । जब वे आने लगें तब उनके आगे आगे होकर उन्हें घरके भीतर ले आवे, आनेपर उन्हें ऊंचा काष्ठका आसन देवे अर्थात् काठका सिंहासन, कुर्सी, चौकी आदि पवित्र आसनपर उन्हें बिठा देवे । पश्चात् उनके चरणोंका प्रासुक जलसे प्रक्षाल करे, इसीका नाम पादोदक है। पाद-चरणोंके लिये जो जल उसे पादोदक कहते है अथवा पादोंसे लिया हुआ जो जल वह पादोदक कहलाता है, उनके चरणोंका जल-प्रक्षाल पवित्र जल है उसे शरीरमें लगाना चाहिये । प्रक्षाल लेनेके पीछे उनकी अष्टद्रव्यसे पूजन करे, पश्चात उनकी प्रदक्षिणा देकर उन्हें नमस्कार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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