Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
३२२ ]
( पुरुषार्थसिद्धय पाय
M
उठने बैठने लेटने ग्रन्थ रखने उठाने आदि क्रियाओंमें जीवोंको देखकर उन्हें उस स्थानसे हटाना चाहिये, वह कार्य अति कोमल पीछीसे ही साध्य है-अन्य किसी उपकरणसे नहीं हो सकता। इसलिये पीछी जीवरक्षाका उपकरण है, कमंडलु शुद्धिका उपकरण है, लघुशंका, दीर्घशंका-मूत्रवाधा मलबाधा दूर करनेपर कमंडलुके जलसे शरीर शुद्धि की जाती है, बिना कमंडलुके शरीरशुद्धि नहीं की जा सकती, इसलिये कमंडलु भी संयमका उपकरण है । शास्त्र ज्ञानोपकरण है, बस ये तीन ही वस्तुएं मुनियोंके पास रहती हैं वे परिग्रहमें शामिल नहीं की जा सकती, कारण कि परिग्रह वही समझा जाता है जिसमें कुछ ममत्वबुद्धि हो, एवं जिससे इंद्रियों व शरीरको सुख मिलता हो, परंतु पीछी कमंडलु दोनोंसे शारीरिक व ऐन्द्रियिक सुख नहीं मिलता और न सुख प्राप्त करना उनसे उद्देश्य ही है किंतु संयमकी रक्षा होना इसी मात्रकी सिद्धिके लिये उन दोनोंका रखना मुनि व ऐलक पदके लिए अत्यावश्यक है। संयमरक्षार्थ एवं विशेष संयमकी सिद्धि व सूचनाके लिये पीछी कमंडलु चिह्न हैं ।
पात्रका स्वरूप पात्रं त्रिभेदमुक्त संयोगो मोक्षकारणगुणानां । अविरतसम्यग्दृष्टिविरताविरतश्च सकलविरतश्च ॥१७१॥
अन्यवार्थ -[ मोक्षकारणगुणानां संयोगः ] मोक्षके कारणरूप गुण-सम्यग्दर्शन सम्य. रज्ञान और सम्यकचारित्र इनका जिनमें संयोग हो ऐसे, [ अविरतसम्यग्दृष्टिः ] अविरतसम्यग्दृष्टि-चतुर्थगुणस्थानवर्ती [ विरताविरतश्च ] विरताविरत-देशविरत पंचमगुणस्थानवर्ती और [ सकलविरतश्च ] सकलविरत-छठे गुणस्थानवती मुनिमहाराज [ इति' पात्रं ] इसप्रकार पात्र [ त्रिभेदं ] तीनप्रकारके [ उक्त ] कहे गये हैं ।
विशेषार्थ-पात्रका सामान्यलक्षण यह है कि जिस आत्मामें मोक्षकी कारणता उपस्थित हो-अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र इन तीनोंकी प्रगटता जिस आत्मामें हो चुकी हो, अथवा केवल सम्यग्दर्शन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org