Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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[ पुरुषार्थ सिद्धयुपाय
परंतु जितना कुछ भी व्रत विधान किया जाता है वह केवल धर्मबुद्धि से ही किया जाता है तभी व्रत कहलाता है । जहां धर्मबुद्धि नहीं है वहां उसे व्रत नहीं कहते, जैसे बहुतसे पुरुष आजकल पेट में गड़बड़ होनेसे दो चार दिनके लिये भोजन छोड़ देते हैं, जो उपवासचिकित्ता-विधिसे अपने शरीर को निरोग रखना चाहते हैं वे कई उपवास कर डालते हैं, परंतु वे सब उपवास कहने योग्य नहीं हैं किंतु उन्हें लंघन कहना चाहिये । उपवास धर्मबुद्धिसे किया जाता है, लंघन में धर्मबुद्धि नहीं है किंतु शरीर रक्षा एवं शरीरशुद्धि ही प्रधान है। इसलिये ऐसे भोजन छोड़ने वाले व्रती नहीं हैं किंतु अवती एवं आरंभी हैं क्यों कि जहांपर शास्त्रोक रीति से, धर्मबुधिसे भोजनादि आरंभोंका त्याग किया जाता है वहींपर . धर्म-व्रत है, अन्यथा नहीं ।
प्रोषधोपवासी पूर्ण अहिंसाव्रती क्यों ? भोगोपभोगहेतोः स्थावरहिंसा भवेकिलामीषां। भोगोपभोगविरहाद्भवति न लेशोपि हिंसायाः॥१५८॥ अन्वयार्थ-( अमीषां ) त्रसहिंसाके त्यागी पुरुषोंके (भोगोपभोगहेतोः) भोग उपभोगके कारणसे ही ( स्थावरहिंसा भवेत् किल ) स्थावर हिंसा होती है ऐसा निश्चय है (भोगोपभोगविरहात ) भोग उपभोगका त्याग कर देने से ( हिंसायाः लेशः अपि न भवति ) हिंमाका लेश भी नहीं होता है।
विशेषार्थ-अहिंसादि अणुव्रत पालनेवाले संकल्पी त्रसहिंसाके तो त्यागी होते ही हैं, स्थावर हिंसाका उनके त्याग नहीं होता, इसका कारण यह है कि वे भोग उपभोग सामग्रीका सेवन करते हैं उसीसे अनिवार्य स्थावर हिंसा उनसे होती है, हिंसाका कारण आरम्भ है । भोगोपभोग पदार्थों के सेवनमें नियमसे आरम्भ है इसलिये हिंसा है । परंतु भोग उपभोग वस्तुओंका परिमाण करनेसे स्थावर हिंसा भी छूट जाती है वैसी अवस्थामें त्रसहिंसा और स्थावरहिंसा दोनोंप्रकारकी हिंसा का त्याग होनेसे हिंसाका
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