Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
[ पुरुषार्थसिद्धय पाय
करने में कारणमात्र ( सावद्य) सदोष वचनको ( भोक्तुं अक्षमाः ) छोड़ने के लिये असमर्थ हैं ( ते अषि ) वे भी ( शेषं समस्तं अपि अनृतं ) बाकी के समस्त झुठको ( नित्यं एव मु'चंतु ) सदा ही छोड़ देवें ।
२४६ ]
भोग्य सामग्री कहलाती हैं नहीं आवे उसे भोग्य कहते
विशेषार्थ - भोजन पान गंध माला आदि अर्थात् जो एक बार भोग कर फिर भोगने में हैं । वस्त्र वर्तन मकान भूषण हाथी घोड़ा सेवक आदि चेतन अचेतन उपभोग्य सामग्री कहलाती है अर्थात् जिसे बार बार भोगा जा सके वह उपभोग्य है । इन भोग उपभोगके साधनों में नियमसे हिंसा होती है । कारण जितना भी आरम्भ है वह सब हिंसामूलक है, बिना हिंसाके आरंभ होता ही नहीं । इसीलिये सप्रयत्न एवं हिंसासे बचनेके लिए सचेष्ट एवं सावधान रहनेवाला गृहस्थ भी स्थावर हिंसासे विरक्त नहीं हो सकता, आरंभी आदि सहिंसा भी उससे होती रहती हैं, घरमें रहकर वह अपने भोग उपभोग के कलापोंसे छूट नहीं सकता इसलिये उतने गृहस्थ के लिये आवश्यक भोग उपभोग साधनों में काम आनेवाले प्रमादयुक्त वचनोंको छोड़कर बाकी बिना प्रयोजन व्यर्थका प्रयोगमें आनेवाला झूठवचन - कठोर अप्रिय सावय वचन तो छोड़ देना चाहिये । ग्रंथकार श्री आचार्यमहाराज कहते हैं कि ऐसी वचन हिंसाको तो प्रतिदिन छोड़ो उससे तो बचनेके लिये सदा चेष्टा करते रहो ।
चोरीका लक्षण
अवितीर्णस्य ग्रहणं परिग्रहस्य प्रयत्तयोगाद्यत । तत्प्रत्येयं स्तेयं सैव च हिंसा बधस्य हेतुत्वात् ॥१०२॥
अन्वयार्थ – [ यत् ] जो । प्रमत्तयोगात् ] प्रमाद के योगसे [ अवितीर्णस्य ] विना दिये हुए [ परिग्रहस्य ] परिग्रहका [ ग्रहणं ] ग्रहण करना है [ तत् ] वह [ स्तेयं ] चोरी [ प्रत्येयं ] जानना चाहिये [ सा एव च ] और वही ( बधस्य हेतुत्वात् ) हिंसाका कारण होनेसे ( हिंसा ) हिंसा है ।
विशेषार्थ - बिना दिये हुये किसीके धन धान्य आदि परिग्रहको प्रमाद
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org