Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुरुषार्थसिद्धयुपाय )
(२७३
आगमन होता है इसलिये रात्रि में पेड़ा बरफी रवड़ी मलाई दूध आदि पदार्थों का खाना भी निषिद्ध है । हिंसासे बचने वालों को ऐसे पदार्थ कभी रात्रि में नहीं भक्षण करना चाहिये । अन्नकी बाढ़ रोककर मीठा खानेवाले यद्यपि शास्त्र के विरुद्ध गमन करते हैं परंतु वे अन्नके त्याग की मर्यादा रखकर बहुभाग अन्नके निमित्तसे होनेवाली आरंभजनित हिंसासे तो बच जाते हैं परंतु उनसे बढ़कर वे हिंसा करनेवाले पुरुष हैं जो यह कहते हुए कि पेड़ा बरफी रबड़ो आदिकी अपेक्षा रोटी चना आदि जो तरल पदार्थ नहीं हैं उनका खाना ठीक है, रात्रिमें रोटी पूड़ी कचौड़ी आदि सभी पदार्थ खाते हैं । रात्रिमें अनका पदार्थ खानेवाले क्यों अधिक हिंसक हैं ? इसका उत्तर यह है कि जिसने रात्रि में निर्मर्याद प्रवृत्ति रखकर अन्नतक खाना स्वीकार कर लिया है वह चारों प्रकारके भोजनमें से किसीप्रकारके भोजनका रात्रि में त्याग नहीं कर सकता क्योंकि भोजनों में, पेट भरनेवाला सबसे पुष्ट एवं रुचिर अन्न ही है । यदि वही ग्रहण कर लिया तो उसके संसर्गसे दाल साग दूध आदि का भी ग्रहण बचाया नहीं जा सकता। दूसरे जब रात्रिमें रोटी वगैरहका ग्रहण ही करलिया तब धीरे धीरे ठंडी रोटीसे अरुचि होकर गरम गरम बनवानेकी इच्छाका उत्पन्न होना एक स्वाभाविक बात है । ऐसी अवस्थामें रात्रिमें रोटी बगैरह भोजन करनेवाले रात्रिमें ताजा भोजन अवश्य बनायेंगे, उस समय चूला आदिका पूरा आरंभ त्रस स्थावर हिंसाका पूर्ण विधायक होगा । कारण रात्रिमें इधर उधर बैठे हुये जीव हटाये नहीं जा सकते वे सब मारे जाते हैं । चूलामें बैठी हुई चिउंटी कीड़ा मकोड़ा आदि रात्रि के आरंभले बचाये नहीं जा सकते. इसलिये अपने कुतर्कबलसे रात्रिमें भोजन करनेवाले त्रस स्थावर दोनों प्रकारकी हिंसाके भोजन हैं । जो अन्नका वचाव रखते हैं वे कुछ मर्यादा रखते हैं, एक बड़े आरंभसे तो बचे रहते हैं परन्तु शास्त्र दृष्टिसे वे भी रात्रिभोजी होनेसे मार्गोल्लंघी हैं
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