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पुरुषार्थसिद्धय,पाय ]
नहीं देख सकता । यदि वह दीपक सामने रखकर उसके प्रकाशमें भोजन करने बैठता है तो भी उसके प्रकाश में नेत्रेंद्रिय के विषयी पतंगे आदि आ आकर भोजनपर पड़ते हैं । यदि दीपक दूर रक्खा जाता है तो फिर थाली पर पूर्ण प्रकाश नहीं पड़ता वैसी अवस्थामें अंधेरा हो जाता है फिर भी दीखना कठिन है | प्रकाश पासमें रक्खा जाता है तो दीपकके और प्रकाशमें बड़ेबड़े जीत्र आ आकर गिरते हैं उनसे सर्वथा बचना नहीं हो सकता इसलिये रात्रि में भोजन करनेवाला जीवहिंसा ही केवल नहीं करता है किंतु अनेक सजीवोंको साक्षात् भक्षण कर जाता है । जो चिउंटी कीड़ा बगैरह थाली में रेंगती हुई चढ़ जाती हैं वह भी दृष्टिगत नहीं पड़तीं रात्रि का प्रकाश कितना ही तेजस्वी क्यों न हो उसमें नेत्रेंद्रिय उतना स्पष्ट और यथाभावको नहीं देख सकती जितना कि सूर्यके प्रकाश में देख सकती है । ऐसी दशामें रात्रिभोजीके पेटमें यदि मकरी चली जाय तो भोजन करनेवालेको कुष्ठरोग हो जाता है । यदि दूध वगैरह में पड़ी हुई मक्खी चली जाय तो वमन (उल्टी ) हो जाती है । यदि शिरका अथवा कपड़ेका जुआं थाली में गिरकर पेटमें चला जाय तो जलोदर हो जाता है । मुदिगका खा जानेसे मेदाको हानि पहुंचती है । बिच्छू खा जानेसे तालू में रोग हो जाता है । कांटा वा लकड़ी खा जानेसे गलेमें रोग हो जाता है। भोजन में बाल (केश ) खा लिया जाय तो स्वरभंग एवं गले में पीड़ा हो जाती है । ये सम्पूर्णदोष रात्रिमें भोजन करनेवालों को लगते हैं, कारण दिनमें इन सब जन्तुओं को नेत्रइंद्रियसे सूर्यप्रकाशमें अच्छी तरह देखा जाता है रात्रि में उनका दीखना अशक्य है । लड्ड ू आदि पदार्थों में भी जो जीव कदाचित् मिल जाते हैं तो उन्हें भी रात्रि में नहीं देखा जा सकता । फिर रात्रिमें भोजन तैयार करनेमें छहों कायके जीवोंकी हिंसा होती है | जहांपर गरम या ठंडा पानी फेंका जाता है वहांतक जीव रात्रिमें नहीं दीखते, वे सब मर जाते हैं । इसलिये रात्रिमें भोजन करनेवाले
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