Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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[ पुरुषार्थसिद्धपाय
२७२ ]
भोजन करनेवाला जीववधसे कदापि नहीं बच सकता । भोजनके चार भेद हैं- खाद्य, स्वाद्य, लेह्य और पेय । खाद्यमें रोटी, भात, पूड़ी कचौड़ी आदि खाने योग्य पदार्थ समझे जाते हैं । स्वाद्यमें स्वाद लेने योग्य पदार्थ जैसे-चूर्ण ताम्बूल सुपारी आदि समझे जाते हैं । लेह्यमें रबड़ी मलाई आदि चाटने योग्य पदार्थ लिये जाते हैं और पेयमें दूध सरबत पानी आदि पीने योग्य पदार्थों का ग्रहण है । लड्ड ू बरफी पेड़ा आदि मिठाई भी खाद्यमें गर्भित है । इन चारों प्रकारके भोजनोंको रात्रिमें नहीं ग्रहण करना चाहिये । अनेक पुरुष रात्रिमें अन्न तो नहीं खाते किंतु रबड़ी, दूध, पेड़ा, बरफी आदि बिना अन्नके बने हुये पदार्थ खाते रहते हैं । परन्तु वास्तव में शास्त्रकारोंने सभी प्रकारके भोजनका निषेध किया है । क्योंकि किसी भी प्रकारके भोजनके भक्षण करनेमें मनुष्य हिंसासे नहीं बच सकता । जो लोग रात्रिमें पेड़ा बरफी रबड़ी दूध आदि खाते हैं उनका खाना शास्त्रदृष्टिसे सर्वथा निषिद्ध हैं । वास्तव में विचार किया जाय तो इन बरफी पेड़ा रबड़ी आदि पदार्थों में तरलता के कारण अधिक जीवों का समावेश हो जाता है और वे जीव उन तरल पदार्थों में यहांतक मिल जाते हैं कि उनका दीखना रात्रिमें नेत्रेंद्रियसे नहीं होता । रात्रिमें विचरनेवाले मच्छर आदि जीव प्रायः उन पदार्थों को सुगंधि पाकर उनके पास जाते हैं और उनपर बैठते ही उन रबड़ी मलाई आदि तरल पदार्थों में सन जाते हैं तथा मरकर वहीं रह जाते हैं ! इसलिये ऐसे पदार्थों का भक्षण कदापि नहीं करना चाहिये । इन पदार्थों में रात्रिमें ही मव्छरादिक जीव गिरते हैं दिनमें सूर्यका प्रकाश होनेसे वे जीव कोनों में एवं अन्धकारपूर्ण स्थानों पर छिपकर बैठ जाते हैं । इन मिष्ट पदार्थों के पास दिन में वह आते ही नहीं । यदि कदाचित् कोई जीव उड़ता हुआ आता भी है तो वह सूर्य और नेत्रेंद्रियके प्रकाशवश होनेवाले विशेष अवलोकन से हटाया जा सकता है । परंतु रात्रि में उलटे जीवोंका अधिक
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