Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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[ पुरुषार्थसिद्धय पाय mmmmmmmmmmwwwwwwwwwwwwimmmmmmmmmmmmm हैं उसे कम फल मिलता है। एक कार्य में प्रवृत्त होनेपर भी एवं समान क्रिया करनेपर भी परिणामोंकी तीव्रता और मंदताके कारण दो जीवोंमें एक अधिक पापी बनकर तीव्र अशुभ कर्म बांध लेता है दूसरा लघु पापी होकर उससे हलका अशुभ कर्म बांधता है। ___यही बात राजा और प्रजामें घटित करना चाहिए । कुछ लोग ऐसा कहते हुए सुने जाते हैं कि 'यदि राजाकी आज्ञासे सैनिक लोग परचक्रको मारें तो उनकी हिंसाका भागीदार वे मारनेवाले सैनिक नहीं होते किन्तु आज्ञा देनेवाला राजा ही होता है। परन्तु यह बात एकांतरूपसे ठीक नहीं है, कारण ऐसा हो सकता है कि राजाने किसी दुष्ट पुरुषका अन्याय देखकर अपने परिणामों में मंदकषाय रखते हुए ही यह आज्ञा दी कि 'अमुक पुरुष बहुत पापिष्ठ है इसलिये उसे मार डालो' तो उसकी हिंसाका भागीदार सरागप्रवृत्ति होनेसे कुछ अंशोंमें राजा भी होता है परन्तु उससे बढ़कर वह सैनिक भी होता है जिसने उसे मारते समय अपने परिणामोंको बहुत ही कर और कलुषित बनाया है। भले ही उसने राजाकी आज्ञासे हिंसामें प्रवृत्ति की है परन्तु हिंसा करते समय जो उसके तीव्र कषायी परिणाम हुए हैं उनसे उसके तीव्र अशुभकर्मका बंध नहीं होगा क्या ? आज्ञा लेनेका इतना ही प्रयोजन है कि वह सैनिक स्वयं किसीको मारनेका अधिकारी नहीं है इसका यह अर्थ नहीं है कि वह हिंसामें रागपूर्वक प्रवृत्ति करनेपर भी निर्दोष बना रहे। हां ! राजा जो आज्ञा देता है वह अन्यायके रोकनेके लिए देता है उसे वैसी आज्ञा देनेके लिए वाध्य होना पड़ता है इसलिए राजाके तीव्र परिणाम न होनेसे वह बहुत कम हिंसाका भागीदार होता है । जैसे कि न्यायपूर्वक दण्डकी आज्ञा देनेवाला न्यायाधीश (जज ) निर्दोष है वैसे ही राज्यशासनकी न्यायपूर्वक व्यवस्था करनेवाला राजा भी निर्दोष है । हां! सरागप्रवृत्तिजन्य स्वल्पहिंसाका भाजन अवश्य है । इसलिए परिणामोंके आधारपर ही हिंसाका फल मिलता है।
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