Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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[ पुरुषार्थसिद्धय पाय
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अन्वयार्थ-( अभिमानभयजुगुप्साहास्यारतिशोककामकोपाद्याः ) अभिमान भय ग्लानि हास्य दुःख शोक कामवासना क्रोध आदिक सभी दुर्गुण अथवा कषाय हैं, वे सब ( हिंसायाः पर्यायाः ) हिंसाके पर्यायवाची शब्द हैं (च) और ( सर्वे अपि ) सभी ( सरकसनिहिताः ) मदिराके निकटवर्ती हैं अर्थात् मदिराके पास रहते हैं ।
विशेषार्थ- अभिमान आदिक सभी दोष हिंसाके ही पर्यायवाची शब्द हैं। इस बातको पहले ही प्रगट किया जा चुका है कि कषायपरिणाम भावहिंसास्वरूप हैं। उपयुक्त समस्त दुर्भाव अथवा कषायभाव मदिरा पीनेसे उत्पन्न होते हैं इसलिये मदिरापायी पुरुष भावहिंसा एवं द्रव्यहिंसा ही किया करता है अर्थात् उसका मदिरापान ही पहले तो हिंसात्मक कार्य है दूसरे उससे होनेवाले भाव और उत्तर प्रवृत्तियां हिंसात्मक हैं इसलिये जो दुर्बुद्धि मदिराका त्याग नहीं करते वे महापापी हैं ।
मांसकी उत्पत्ति न बिना प्राणविघातान्मांसस्योत्पत्तिरिष्यते यस्मात्। मांसं भजतस्तस्मात् प्रसरत्यनिवारिता हिंसा ॥६५॥
अन्वयार्थ -( यस्मात् । जिस कारण ( प्राणिविघातात् विना ) विना प्राणियों के वध हुए ( मसिम्य उत्पत्तिः ) मांसकी उत्पत्ति ( न इश्यते ) नहीं हो सकती ( तस्मात् ) इसलिए ( मांसं भजतः । मांसको सेवन करनेवाले पुरुषको ( हिंसा अनिवारिता प्रसरित ) हिंसा अनिवार्य ( अवश्य ही ) होती है। ___ विशेषार्थ-मांस क्या पदार्थ है ? इसका विचार करनेसे जाना जाता है कि मांस त्रस जीवका भीतरी शरीरपिण्ड है इसलिये जो वस्तु साक्षात् त्रस जीवके शरीरका पिण्ड है वह बिना जीवबधके तैयार नहीं हो सकती अतः मांस सेवन करनेवालेको हिंसा अनिवार-अवश्य ही होती है ।
मांसमें अन्य अनन्तजीव यदपि किल भवति मांसं स्वयमेव मृतस्य महिषवृषभादेः। तत्रापि भवति हिंसा तदाश्रितनिगोतनिर्मथनात् ॥६६॥ अन्वयार्थ- ( यदपि ) यद्यपि ( मांसं ) मांस ( स्वयं एव मृतस्य ) अपने आप मरे हुए
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