Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुरुषार्थसिद्धय पाय ]
[ १४१
पदार्थ (द्वीप, समुद्र, सुमेरु, विदेह, भोगभूमि, नरक, स्वर्ग, आदि पदार्थ ) तथा दूरवर्तीपदार्थ ( जो कालकी अपेक्षासे बहुत दूर जा चुके अथवा अमी दूर हैं ऐसे राम, रावण, चक्री, कामदेव आदि ) इन सबमें सम्यग्दृष्टिको श्रद्धा रहती है । शंका हो सकती है कि 'ये सभी पदार्थ इंद्रियगोचर न होनेसे सम्यग्दृष्टिके अनुभवमें कैसे आते हैं ?' इसका उत्तर यह है किउसके सम्यक्त्वका ऐसा ही माहात्म्य है कि उसे अमूर्त एवं मूर्त परोक्ष पदार्थों पर आस्तिक्य-भाव जागृत हो जाता है । कुछ अंशोंमें उसका ज्ञान निर्मल हो जाता है । इसलिये वह उन पदार्थो का आस्तिक्यपूर्वक अनुभव करता है । जिसप्रकार योगियोंकी योगशकिका अपूर्व एवं वचनातीत माहात्म्य होता है, उसीप्रकार सम्यग्दृष्टिके भावोंका वचनातीत माहात्म्य होता है । मिथ्यादृष्टिके मिथ्योपजीवी भाव रहने से वह आस्तिक्यभाव जागृत ही नहीं होता; इसलिये वह सर्वज्ञ प्रतिपादित पदार्थों में सदा संशयालु ही बना रहता है । समस्त आत्माओंकी शक्तियां समान हैं, फिर भी मिथ्यास्वभावके विपरिणामसे आत्मा मूर्छित हो जाता है । इसलिये जिसप्रकार रागके तीत्र उदयसे मृत बच्चे पर भी माँका तीव्र अनुराग हो जाता है, उसीप्रकार उस मू के निमित्तसे वह विपरीत स्वादुवाला बना रहता है। विवेकके जागृत होनेपर जैसे माँका उस बच्चेसे मोह हट जाता है, उसीप्रकार सम्यक्त्वभावके प्रगट होनेपर आत्मा सत्पदार्थो का ही ग्राहक एवं श्रद्धास्पद बन जाता है ।
कुछ लोग ऐसी भी तर्कणा करते हैं कि 'बिना निर्णय किये जो श्रद्धा होती है वह केवल अंधश्रद्धा होती है, उससे आत्मीय हित क्या हो सकता है ?' ऐसा कहनेवाले भी भूल करते हैं, अंधश्रद्धा और सम्यग्दृष्टिकी श्रद्धामें जमीन-आसमानका अंतर है । जो बात अपने अनुभवमें अथवा अपने विश्वासमें तो आती नहीं किंतु दूसरोंके देखादेखी यह समझकर कि 'अमुक पुरुष विश्वास करते हैं तो ठीक होगी' किसी बातपर झट विश्वास
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