Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुरुषार्थसिद्धय पाय )
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परिज्ञान कर लेना कि धूआँ अग्निके बिना नहीं रहता, इसलिये धूआँ अग्निका व्याप्य पदार्थ है। __साधनसे साध्यका ज्ञान कर लेना, इसीका नाम 'अनुमान' है । जैसे किसी प्रदेशमें धूआँ निकलता हुआ दिखाई देता हो, तो उससे यह निश्चयात्मक ज्ञान कर लेना कि उस प्रदेशमें अग्नि अवश्य है, क्योंकि धूआं विना अग्निके रह नहीं सकता, इसलिये वह अग्निका निश्चय कराता है । इसप्रकार साधनसे ( हेतुसे ) साध्यका निश्चयात्मक ज्ञान कर लेना, इसीका नाम 'अनुमान' है । जैसे कोई कोई तर्कको तर्कणाशील बुद्धि समझते हैं, वैसे अनुमानको भी अन्दाजा समझते हैं; उसीप्रकार बोलते भी हैं कि 'अमुक बात मैंने अनुमानसे कही थी, मुझे उससमय ऐसी ही मालूम हुई थी, झूठी निकल गई तो क्या हुआ ? मैंने निश्चयरूपसे तो नहीं कही थी, अनुमानसे कही थी।' यहांपर अनुमानसे कहनेवालेका अभिप्राय अन्दाजा है। किसी बातको अटकलसे अनिश्चय एवं संदेहरूपमें प्रगट कर देनेका नाम अन्दाजा है। परंतु अन्दाजाके अर्थमें अनुमान का प्रयोग करना सर्वथा असंगत है, विपरीत है। कारण अनुमानज्ञान प्रमाणात्मक है, वह सदा निश्चयात्मक ही होता है और यथार्थ ही होता है । जो निश्चयात्मक और यथार्थ नहीं होबे, उसे अनुमान नहीं कहना चाहिये, किंतु अनुमानाभास अथवा मिथ्याज्ञान कहना चाहिये। जो अविनाभावी हेतुसे यथार्थरूपमें निश्चयात्मक साध्यका बोध किया जाता है, उसीको 'अनुमानज्ञान' कहते हैं । इसीलिए धर्मद्रव्य, ( बाद विवाद ) करनेका नाम ही वे तर्क बतलाते हैं; परन्तु उस तर्क नामसे यह तर्क नाम जुदा हो है । जिन दो पदार्थोंका अविनाभाव सम्बन्ध होता है, उस सम्बन्धके ज्ञान कर लेनेकी ही तर्क संज्ञा दी गई है। यह प्रमाणरूप (यथार्थ ) ज्ञान है; वादविवादवाला तर्क अप्रमाणरूप ( अयथार्थं) ज्ञान है यही दोनोमें भेद है।
१. जहां धूआँ पाया जाता है, वहां अग्नि अवश्य रहती है; अग्निके बिना धूआँ कभी नहीं रह सकता. इसीका नाम 'व्याप्य' है । अग्नि धूआँ के बिना भी तपेहुये लोहे आदि में पाई जाती है, इसलिये वह, 'व्यापक' है।
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