Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
पुरुषार्थसिद्धय पाय ]
[ ३५
देखने में आते हैं, वे तो दो-इन्द्रिय भी हैं; तीन-चार-पाँच इन्द्रिय वाले भी हैं, उनकी चर्चा नहीं है । जिन जीवों का जल ही शरीर है, उन्हीं का यहाँ वर्णन है । जो जल से अतिरिक्त दीखते हैं उनका जल शरीर नहीं है, शरीर उनका दूसरा ही है, जल तो केवल आधार है। जैसे मनुष्यका शरीर दूसरा है, पृथ्वी उसका आधार है । पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय, ये पाँचों ही प्रकार के जीव एक स्पर्शन-इन्द्रिय वाले हैं । जिन जीवों का कर्मभार कुछ हलका होता है, उनके एक रसनाइन्द्रिय भी प्रगट होती है । जब उन जीवोंको रसनाइन्द्रिय रूप बाह्य योग्यता मिलती है तो उनका गुण विकाशभी पहले जीवोंसे(एकेंद्रिय जीवोंसे) बढ़ता है; वे केवल स्पर्शका ही बोध नहीं करते किंतु पदार्थको चख कर उनका स्वाद भी लेते हैं । परन्तु स्वाद लेनेके सिवा वे उनकी गन्धका ज्ञान नहीं कर सकते, उन्हें देख नहीं सकते; कारण कर्मोदयवश उन्हें बाह्ययोग्यता उतनी ही मिली है। ऐसी योग्यतावाले जीवोंमें लट, शंख आदि जीवोंकी गणना है। उनकी अपेक्षा और भी जो कर्मभारसे हलके हैं; उन्हें नासिकारूप भी बाह्ययोग्यता मिली है; वे वस्तुओंकी गन्धका भी ज्ञान कर लेते हैं । चींटी, मकोड़ा आदि जीव तीन इंद्रियवाले हैं। उनसे भी जो कर्मभारसे हलके हैं उनके आंखें भी हैं, जैसे भ्रमर, व” आदि । उनसे बढ़कर योग्यता उन्हें प्राप्त है जिनके कान भी हैं। उनसे भी बढ़कर योग्यता उन्हें प्राप्त है जिनके मन भी है। जिन जीवोंके मन है, वे ही पांचों इंद्रियोंसे जो ज्ञान करते हैं उसके परिणाम तक मन-द्वारा पहुंचते हैं । देव, नारकी और मनुष्य, इन तीन गतियोंवाले जीव तो सभी मनवाले होते हैं । तिर्यंचोंमें पशुपक्षी आदिके मन हैं, बाकी चार इंद्रियवालों तक तो नियम से मन नहीं है पंचेंद्रिय भी कोई कोई ऐसे हैं जिनके मन नहीं है। सब जीवों के समान होनेपर भी कमों की तीव्रता मंदतासे उनकी अनेक अवस्थायें देखने में आती हैं जबतक शरीरमें जीव रहता है तबतक शरीर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org