Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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। पुरुषार्थसिद्धय पाय
सुगंधि आने लगे, उससमय जान लेना चाहिए कि आम पीला हो चुका।' यह एक निर्णीत विषय है कि एक पदार्थका बोध उसके सहभावी दूसरे पदार्थ से सहज किया जाता है। उसीप्रकार सम्यक्त्व यद्यपि निर्विकल्पक है, फिर भी उसका परिज्ञान उसके सहभावी ज्ञानविशेषसे सहज कर लिया जाता है । वह ज्ञानविशेष स्वानुभूतिके नामसे विख्यात है । अर्थात् स्वानुभूत्यावरणकर्मके क्षयोपशमसे-मतिज्ञानावरणकर्मका विशेष क्षयोपशम होनेसे जो आत्माका साक्षात्कार करनेवाली स्वानुभूति उत्पन्न होती, है वह सम्यक्त्वकी उत्पत्तिके सहभावमें ही होती है। इसलिये जिससमय आत्मामें स्वानुभव होने लगे, उससमय समझ लेना चाहिये कि आत्मामें सम्यग्दर्शन प्रगट हो चुका । इस स्वानुभूतिका सम्यक्त्वके साथ सहभाव होनेसे अर्थात् समव्याप्ति' होनेसे स्वानुभूतिको ही सम्यक्त्वको लक्षण कह दिया गया है। जैसे श्रीसमयसारकार आचार्यप्रमुख श्रीकुंदकुदस्वामीने स्वानुभूतिको ही सम्यक्त्व कहा है। श्रीसर्वार्थसिद्धिके कर्ता पूज्यपाद श्रीपूज्यपाद महाराजने भी सम्यक्त्वका अंतरंगलक्षण यही कहा है कि "आत्मविशुद्धिमात्रमितरत' अर्थात आत्माकी विशुद्धिविशेष ही अंतरंगसम्यक्त्व है । यद्यपि स्वानुभूति ज्ञानकी पर्याय है, वह सम्यक्त्वसे भिन्न वस्तु है; फिर भी सम्यक्त्वका सहभावी ज्ञानका परिणाम है, इसलिये उसे ही सम्यक्त्वके स्वरूपका द्योतका कहा गया है अथवा सम्यक्त्वस्वरूप मान लिया गया है । जहां स्वानुभूति आत्मामें प्रगट हुई वहां आत्मीय सच्चे
१. जिसके होने पर जो हो, उसे व्याप्ति कहते हैं । अर्थात् दो पदार्थों के अविनाभावसंबन्धका नाम ही व्याप्ति है । वह व्याप्ति कहीं सम होती है, कहीं विषम । जहाँ इकतरफा एक पदार्थका दूसरेके साथ अविनाभाव होता है, वहाँ विषमव्याप्ति कहलाती है । जैसे-धूमका अग्नि के साथ अविनाभाव है, वह इकतरफा है, क्योंकि धूम तो अग्निके साथ रहता है, वह उसे छोड़कर नहीं रह सकता । परंतु अग्निका धूमके साथ अविनाभाव नहीं है, अग्नि धूमको छोड़कर भी अयोगोलक ( अग्निसंतप्त लोहे ) आदि में रहती है जहाँ दोनों ओरसे अविनाभाव होता है, वहाँ समव्याप्ति कहलाती है। जैसे-जहाँ स्पर्श होगा वहाँ रूप-रस-गन्ध अवश्य होंगे, जहाँ-रूप-रस-गन्ध होंगे वहाँ स्पर्श अवश्य होगा । इसी प्रकार सम्यक्त्व और स्वानुभूति में समव्याप्ति है । एक किसीके अभावमें दूसरा नहीं रह सकता।
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