Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुरुषार्थसिद्धय पाय ]
[ ११५ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwmmmmmmmmmmmmmmmmmm तथा संवर और निर्जरा मोक्षके कारण हैं । जिन परिणामोंसे कर्म आते हैं, जीवके उन परिणामोंको भावास्रव कहते हैं । जो पौद्गलिक कर्म आते हैं, उन्हें द्रव्यास्रव कहते हैं। जिन जीवके परिणामोंसे बंध होता है. उन्हें भावबंध कहते हैं । जो कर्म आत्माके साथ बंधते हैं, उन्हें द्रव्यबंध कहते हैं । जिन आत्मीय भावोंसे आतेहुए कर्म रुकते हैं, उन्हें भावसंवर कहते हैं । जो कर्म रुकने हैं, उन्हें द्रव्यसंवर कहते हैं । जिन आत्मीय भावोंसे एकदेश कर्मों का क्षय होता है, उन्हें भावनिर्जरा कहते हैं। जो कर्मों का क्षय होता है, उसे द्रव्यनिर्जरा कहते हैं। जिन आत्मीय अत्यन्त विशुद्ध परिणामोंसे समस्त कर्मों का क्षय होता है, उन परिणामोंको भावमोक्ष कहते हैं; तथा जो समस्त कर्मों का क्षय होता है, उसे द्रव्यमोक्ष कहते हैं । इन सात तत्वोंमें पुण्य और पाप ये दो और मिला दिये जाय, तो नव पदार्थ कहलाते हैं । यद्यपि पुण्य पाप जीवकी ही शुभाशुभ अवस्थायें हैं; इसलिये उनका ग्रहण आस्रव और बंधतत्वमें आ जाता है, फिर भी इनका जुदा ग्रहण जो किया गया है, वह प्रधानताकी अपेक्षाले किया गया है । जैसे-सब अध्यापकोंके आ जाने पर कहना कि 'सब अध्यापक आगये और प्रधानाध्यापक भी आगये । यद्यपि प्रधानाध्यापकका ग्रहण 'सब अध्यापकों में आचुका, तथापि प्रधानताकी अपेक्षासे प्रधानाध्यापक का ग्रहण जुदा किया जाता है । इन सात तत्व एवं नव पदार्थों का यथार्थ श्रद्धान करना, इसीका नाम व्यवहारसम्यक्त्व है।
पांच इन्द्रियोंके विषयों में एवं क्रोधादिक कषायोंमें मनका शिथिल होना, अथवा जिन जीवोंने अपना अपराध किया है, उनपर भी कषायभाव जाग्रत नहीं करना, इसीका नाम प्रशम है । संसारसे भयभीत रहनेका नाम संवेग है, अर्थात् संसार एवं शरीर आदि पदार्थों में उदासीनता होना सो संवेग है जीवों पर दया करनेका नाम अनुकंपा है । और आत्मामें, धर्ममें, धर्म-कारणों में तथा धर्मके फलमें विश्वास करना, उन सबको जैसा
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