Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुरुषार्थसिद्धय पाय ]
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से सूघे जानेवाले सुगन्धित दुर्गन्धित पदार्थ, जीभसे स्वादमें आनेवाले खट्ट, मीठे, चरपरे, नमकीन, आदि पदार्थ एवं शरीरद्वारा स्पर्श होनेवाले हलके, भारी, कोमल, कठोर, रूखे, चिकने, ठंडे, गरम आदि जितने भी हैं, रूप-रस-गंध-स्पर्शवाले हैं; इसलिये सभी पुद्गलके स्कंध हैं । बहुतसे पुद्गल ऐसे भी हैं जो हमारी इंद्रियोंसे जाने भी नहीं जा सकते; जैसे कि कार्माणवर्गणायें, नोकार्माणवर्गणायें आदि सूक्ष्मस्कंध । कुछ दार्शनिक लोग ऐसा मानते हैं-'पृथिवीके परमाणु भिन्न हैं, जलके भिन्न हैं, अग्निके भिन्न हैं, वायुके भिन्न हैं; इसलिये वे चारों ही जुदे जुदे चार द्रव्य हैं।' परन्तु ऐसा उनका मानना युनिसे एवं प्रत्यक्षादि प्रमाणोंसे बाधित है । देखने में आता है कि लकड़ी ही जलकर अग्नि बन जाती है । अग्निके परमाणु ही जलजलाकर भस्मरूपमें आकर पृथिवीका रूप धारण कर लेते हैं । जल आपात के निमित्तसे बाफ बनकर वायुरूपमें उड़ जाता है। दो वायुओंके मिल जानेसे जल जाता है, एवं जलसे ओलेरूप पत्थर बन जाते हैं । बरफरूप पत्थरसे और पहाड़ोंसे जलकी उत्पत्ति हो जाती है । दो बांसोंकी रगड़से वहींके परमाणु अग्निरूप धारण कर लेते हैं । मिट्टीका (किरासिन) तेल कोयलोंमें निकलता है, इसलिये पृथ्वीसे जल बन जाता है; एवं स्वयं जलरूप होकर भी अग्निके साथ अग्निरूप धारण कर लेता है। टेलीग्राफ (तार, शब्द भेजनेका यन्त्र ) आदिके द्वारा जो शब्द निकलता है, वह मध्यवर्ती सूक्ष्मपरमाणुओंको बिजलीकी टक्करसे शब्दरूप बनाता जाता है इत्यादि अनेक उदाहरणोंसे यह बात भलीभांति सिद्ध है कि जल अग्नि पृथ्वी वायु सब एक ही द्रव्यके निमित्त पाकर होनेवाले विकार हैं । जल अग्नि आदिमें नामोंवाले जुदेजुदे चार द्रव्य नहीं है । आजकल विज्ञानवादियों ( साइन्टीफिकों ) ने पृथिवी जल आदि अनेक भिन्नभिन्न स्कंधोंको मिश्रण द्वारा (मिलाकर ) एकका दूसरेरूप परिणमन प्रत्यक्ष कर दिखाया है । जैनसिद्धांत तो अनादिसे रूप-रस-गंध-स्पर्शवाले समस्त
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