Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुरुषार्थसिद्धय पाय ]
[ ४५
कि “ दो पदार्थों का संबंध अनादिसे नहीं हो सकता, दोनों जुदेजुदे रहकर पीछे किसी निमित्तवश किसी काल-विशेषमें एक दूसरेमें मिल जाते हैं । कर्म पुद्गलकी पर्याय है, अतः वह स्वतन्त्र द्रव्य है; जीव भी स्वतन्त्र द्रव्य है, पीछे दोनों संबंधित होते हैं। जैसे घरके कोने में डंडा रक्खा हो, पुरुष उसे हाथमें लेकर चलने लगे तो डंडा और पुरुषका संबंध होता है । वह संबंध सादि है, अनादि नहीं। पहले पुरुष भी स्वतंत्र है और डंडा भी स्वतंत्र है। ऐसा कभी नहीं हो सकता कि डंडा और पुरुष दोनों अपने जन्मकालसे ही मिले हुए हों । इसीप्रकार कर्म और जीव दोनों ही स्वतन्त्र द्रव्य हैं । उनका भी संबंध अनादि नहीं है, किंतु सादि हैं ?” इस प्रश्नका उत्तर इसप्रकार है कि-इस जगत् में कुछ पदार्थ ऐसे भी पाये जाते हैं जो स्वतन्त्र होते हुए भी अनादिकालसे सम्बन्ध किये हुये हैं । कुछ ऐसे भी पाये जाते हैं जो पहलेसे भिन्नभिन्न हैं, पीछे मिले हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो मिलकर फिर अलग-अलग हो जाते हैं कुछ ऐसे भी हैं कि अनादिसे मिले हुए हैं और अनन्तकाल मिले ही रहेंगे। अलग-अलग कभी न तो हुए ही; और न होंगे ही। कुछ ऐसे भी पदार्थ हैं जो अलग-अलग होकर फिर मिल जाते हैं; और कुछ ऐसे भी हैं जो एकबार अलग होकर फिर कभी नहीं मिल सकते । कुछ ऐसे भी हैं जो एक द्रव्य दूसरे द्रव्यसे न कभी मिले, और न कभी मिलेंगे । सुमेरुपर्वत, ज्योतिश्चक्रके विमान आदि अकृत्रिम पौद्गलिक ऐसे स्कंध हैं जो अनादिकालसे मिले हुए हैं, तथा अनन्तकाल तक मिले रहेंगे; न कभी जुदे थे, न होंगे। सोना आदिक ऐसे पदार्थ हैं जो सदासे किट्टिकालिमादिक मलों से विशिष्ट रहते हैं; पीछे अग्निमें तपाने से उनका सम्बन्ध छूट जाता हैसोना जुदा हो जाता है, मल जुदा हो जाता है । कुछ पर्वतादिक पाषाण ऐसे हैं जो पहले जुदे-रूप मेंथे, पीछे एकत्रित स्कंधरूप हो गये । संसारी अभन्य जीव अनादिकालसे सदा अशुद्ध रहता है; और अनन्तकाल तक सदा वैसा ही रहेगा । अभव्यजीवका कर्म सम्बन्ध न तो कभी टूटा, और न कभी टूट
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