Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुरुषार्थसिद्धय पाय ]
( खंडन ) हो चुका।
___ अब एक शंका यह हो सकती है कि 'यदि सम्यग्ज्ञानसे पहले सम्यग्दर्शन होता है तो सम्यग्दर्शनकी प्राप्तिके लिये जो 'देशनालब्धिका 'आवश्यक विधान किया गया है वह क्यों ? अर्थात् सम्यग्दर्शनके पहले जितना भी ज्ञान है सभी मिथ्या है तो सम्यक्त्वप्राप्तिमें कारणभूत जो सद्गुरुके उपदेशसे ज्ञान होगा वह भी मिथ्या होगा, फिर उस मिथ्याज्ञानसे सम्यक्त्वप्राप्ति कैसे हो सकती है ?' इस शंकाका यह परिहार है कि-पदार्थों को ठीक-ठीक जान लेनेका ही नाम सम्यग्ज्ञान नहीं है, पदार्थों का ठीक ठीक ज्ञान तो मिथ्यादृष्टिको भी होता है, वह भी व्यावहारिक सभी पदार्थों को ठीकरूपसे जानता है । इतना ही नहीं, किंतु बड़ेबड़े विज्ञानवादी पदार्थ-खोजमें अतिसूक्ष्म गवेषणा करते हैं । सम्यग्दृष्टियोंसे भी अधिक पदार्थ-स्वरूप तक जाते हैं, फिर भी उनका ज्ञान मिथ्याज्ञान रहता है और सम्यग्दृष्टियोंका स्वल्पज्ञान भी सम्यग्ज्ञान कहा जाता है । इसलिये सबसे पहले हमें सम्यग्ज्ञानका स्वरूप समझ लेनेकी आवश्यकता है । वास्तवमें सम्यग्ज्ञानका लक्षण यही है कि- जिस ज्ञानमें आत्माका निज स्वरूप प्रतिभासित होता हो, वही ज्ञान सम्यग्ज्ञान है । अर्थात् जिसज्ञानमें स्वानुभूति ( अपने आत्माका अनुभवन ) होता हो, वही ज्ञान सम्यग्ज्ञान है । वाह्यपदार्थों के ठीक जानने न-जाननेसे उसकी यथार्थता अयथार्थताका संबंध नहीं है । मिथ्यादृष्टि भी लौकिक पदार्थों को जैसेकेतैसे समझता है; अथवा सम्यग्दृष्टि भी कभी कभी नेत्रादिमें विकार आजानेसे वाह्यपदार्थों में विपरीत बोध कर लेता है, परन्तु वह केवल वाह्यविकारका दोष है । अन्तरंगमें स्व-स्वरूपका अनभव एवं साक्षात्कार करनेसे
१. सम्यक्त्व प्राप्तिके योग्य सदुपदेश मिलनेको देशनालब्धि कहते हैं । सम्यक्त्व-प्राप्तिमें कारणभूत पांच लब्धियोंमें एक देशनालब्धि है। २. अनादि-मिथ्या दृष्टिके लिये देशनाल ब्धि आवश्यक कारणोमें है, विना देशनालब्धिके अनादि-मिथ्यादृष्टिको सम्यक्त्व नहीं हो सकता । सादि-मिथ्यादृष्टि के लिये ऐसा
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