Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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] पुरुषार्थसिद्धयुपाय
समस्त द्रव्य अपने अपने उपादानकारणोंको लेकर परिणमन करते रहते हैं। हां, इतना अवश्य है कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्यके परिणमनमें निमित्त भूत पड़ जाता है । निमित्तके साथ 'मात्र'पद देनेका यही प्रयोजन है, कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य के परिणमनमें अंशांशमात्र भी उपादानरूपसे कारण नहीं हो सकता, केवल भिन्नस्वभाव रखकर ही परिणमनसे साधक हो जाता है ।
आत्मामें कर्म-रूप पर्याय पुद् गलकी पर्याय है । कर्मपर्याय समस्त पुद्गलस्कन्धोंसे नहीं बनती और न हर किसी पुद्गलस्कंध को आत्मा आकर्षण ही करता है, किंतु कार्माणवर्गणा से कर्मपर्यायकी रचना होती है । इसका सारांश इसप्रकार है कि- पुद्गल द्रव्यकी तेईस प्रकारकी वर्गणाएँ हैं, उनमें पांच प्रकारकी वर्गणाएँ ऐसी हैं जिनसे कि जीवका सम्बन्ध है, बाकी १८ प्रकारकी वर्गणाओंसे जीवका कोई प्रकारका सम्बन्ध नहीं है । पांच प्रकारकी वर्गणाओंमें- आहारवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा और तैजसवर्गणा, इन चार प्रकार की वर्गणाओंसे नोकर्म बनते हैं, और कार्मा
वर्गणाओंसे आठ प्रकारके कर्म बनते हैं । आहार वर्गणासे औदारिक, वैक्रिक और आहारक, इन तीन शरीरोंकी रचना होती है । भाषावर्गणा से भाषा अर्थात् 'शब्दरूप रचना होती है, मनोवर्गणा से द्रव्य-मन बनता है
,
१. शब्दको नैयायिक, वैशेषिक, मीमांसक आदि अमूर्त एवं आकाशका गुण मानते हैं, परन्तु वास्त व शब्द पुद् गलकी पर्याय होनेसे मूर्त है । उसे आकाशका गुण एवं अमूर्त कहना भूल है । शब्दमूर्त इस - लिए है कि वह मूर्तिमान् पदार्थोंसे रोका जाता है—घाता जाता है । शब्द मित्तिसे रुक जाता है, गगनभेदी शब्द कानकी झिल्लियोंको फाड़ देता है । ये सब कार्य मूर्तपदार्थ में ही हो सकते हैं, अमूर्त में कभी नहीं हो सकते दूसरे, शब्दका इन्द्रिय- प्रत्यक्ष भी होता है अर्थात् वह कर्ण - इन्द्रियसे जाना जाता है । और जिसका इन्द्रियप्रत्यक्ष है. वह मूर्त होता है । जैसे कि आंख-नाक-मुहसे होनेवाले प्रत्यक्षभूत पदार्थ सभी मूर्त होते हैं। तीसरे, शब्दका स्पर्श होता है, इसलिये उसमें रूपरसगन्ध भी अवश्य है । और जिनपदार्थों का स्पर्श होता है, उन सबमें रूप-रस- गन्ध अवश्य रहते हैं, जैसे कि पुस्तक, कपड़ा, चौको आदि। शब्द 'टेलीफोन' ( एक प्रकारका श्रवण-यंत्र ) द्वारा इधर से उधर पहुँचाया जाता है, 'फोनोग्राफ' (एक तरहका वाद्ययन्त्र) में भर दिया जाता है, इत्यादि प्रत्यक्ष प्रमाणोंसे भलीभांति सिद्ध होता है कि वह 'मूर्त' है | शरीरधारी आत्मा जो शब्दोच्चारण करता है, वह भाषावर्गणाका कार्य है । जो भाषा वर्गणाएँ आत्माने नोकरूपसे ग्रहण की थी, वे ही उदयमें आकर वचनरूपसे खिरती है ।
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