Book Title: Purusharthsiddhyupay Hindi
Author(s): Amrutchandracharya, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पुरुषार्थसिद्धयु पाय ] mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm किंतु वस्तुस्वभाव ही वैसा है । इसलिये सिद्धोंका ज्ञानगुण द्वारा जो परिणमन होता है, वह स्वाभाविक परिणमन है । वस्तुस्वभाव अनिवार्य है, उत्पादादित्रय होना अस्तित्वगुणकी पर्याय है,वस्तुमात्रमें सत्ता है, इसलिए सिद्धोंमें भी उत्पादादित्रय सदा होते ही रहते हैं । जिसप्रकार ज्ञानगुणका दृष्टांत दिया गया है, उसीप्रकार सिद्धोंमें अन्य समस्त गुणों का परिणमन होता रहता है । ज्ञान एक ऐसा गुण है, जो विवेचनामें लाया जा सकता है; कारण वह सविकल्पक है। अन्य समस्त गुण निर्विकल्पक हैं, अतएव वे अवतव्य होनेसे अविवेच्य हैं। सिद्धों के समस्त गुणोंमें अगुरुलघु गुणका षट्गुणी-हानिवृद्धि-रूप परिणमन प्रतिक्षण होता रहता है । यह स्वभावपरिणमन किसी परपदार्थकी अपेक्षा नहीं रखता । इस स्वाभाविक परिणमनसे भी सिद्धोंमें सदा उत्पाद-व्ययध्रौव्य होता रहता है। इसीप्रकार धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल इन समस्त द्रव्योंमें भी प्रतिक्षण उत्पादादित्रय होते रहते हैं । पुद्गलका परिणमन तो मूर्त एवं स्थूल होनेसे दृष्टिगोचर होता है, बाकी अमूर्त पदार्थों का परिणमन छद्मस्थोंके प्रत्यक्षज्ञानका विषय नहीं है, परोक्ष आगमादि ज्ञानका विषय अवश्य है। ___उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य, तीनों ही वस्तुके सत्तागुणकी एक क्षणवर्ती त्रितय रूप पर्याय हैं । ये तीन परिणाम भिन्नभिन्न समयमें नहीं होते, किंतु तीनोंहीका एक समय है । उत्पादका अर्थ है उपजना, व्ययका अर्थ है विनस जाना, ध्रौव्यका अर्थ है ठहरना अर्थात् स्थिर रहना। इन अर्थों से यह प्रयोजन नहीं समझना चाहिये कि वस्तु ही उपजती और बिनसती है। यदि वस्तु ही उपजती-विनसती होती, तो उत्पाद और व्यय इन दो के कहनेकी ही आवश्यकता थी; तीसरा ध्रौव्य क्यों कहा गया ? इस ध्रौव्यके कहनेसे सिद्ध होता है कि वस्तु न तो उत्पन्न होती है और न नष्ट होती। वह तो नित्य सदा स्थाई है, हरएक वस्तु अजर अमर है; उसकी पर्यायें उपजती और नष्ट होती हैं। उत्पत्ति होना और नष्ट होना, इन
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