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दशम अध्याय
सबको अपना-अपना जीवन प्यारा है। ..:. : . .. . . .. . जैनशास्त्र तो इस प्रकार के मांसाहार विरोधी वचनों से भरपूर हैं।
- जैनधर्म की तो नींव ही अहिंसा पर है । किसी जीव की हत्या करना . दूर रहा, वह तो किसी का अनिष्ट चिन्तन करना भी पाप समझता
है । जैनेतर धर्मशास्त्र भी इसी का समर्थन करते हैं। उनके कुछ — प्रमाण निम्नोक्त हैं-- . . . . . ...............
न किदेवा मिनीमसी न किरा योपयामसि ।
. .. (ऋग्वेद १-१३८-७) :. :: अर्थात्- हम न किसी जीव को मारें और न धोखा दें। न से धन्तं रयिनशत् (ऋग्वेद-७-३२-२१) .... अर्थात्-हिंसक को धन नहीं मिलता।
सर्वे वेदा न तत्कुयुः, सर्वे यज्ञाश्च भारत ! सर्वे तीर्थाभिषेकाच,यत्कुर्यात् प्राणिनां दया।
......... (महाभारत शांतिपर्व) ..... अर्थात्-प्राणियों की दया जो फल देती है, वह चारों वेद
और समस्त यज्ञ भी नहीं दे सकते, और तीर्थों के स्नान तथा वन्दन भी. वह फल नहीं दे सकते। ........ .. . यावन्ति पशुरोमारिए; पशुगात्रेषु भारत !::: ...
तावद् वर्षसहस्राणि, पच्यन्ते पशघातकाः॥. ... . अर्थात्-हे अर्जुन ! पशु के शरीर में जितने रोम होते हैं, उतने :
हजार वर्ष पशु का घात करने वाले नरकों में जाकर दुःख पाते हैं। ... प्राणिघातात्तु यो धर्म-मीहते मूढ मानसः ।