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महावीर : मेरी दृष्टि में
फिर भी जरूरी नहीं । अगर तुमने कहा कि यही सत्य है कि गुजराहो के
जिसको भी ज्ञात हो गया है वह कोशिश करेगा तुम्हें खबर देने की । लेकिन खबर को भी पकड़ लिया, जैसे किसी ने मन्दिर में बाहर 'काम' है, अन्दर 'राम'
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है, तो हम इसी मन्दिर में ठहर जाते हैं, झंझट छोड़ें, जब यही सत्य है और सब हम इसी मन्दिर के पुजारी हो जाते हैं । तो हो तुम बात । अगर तुम समझ जाते तो इस मन्दिर बात खत्म हो गई थी । अगर इशारा समझ में
सत्य इसमें खोदा हुआ है तो जाओ तुम पुजारी ! चूक गए से कुछ लेना देना ही नहीं था
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आ गया होता तो इस मन्दिर में न भीतर था, न बाहर था कुछ । बात खत्म हो गई थी और तुम कहते कि ठीक है । और तुम लोगों से कहते कि देखना मन्दिर में मत उलझ जाना; मन्दिर से कुछ न मिलेगा और अगर ध्यान रहा कि मन्दिर से कुछ न मिला तो शायद खोज हो और मन्दिर से भी कुछ मिल जाए । मेरी कोई शत्रुता नहीं मन्दिर से, शत्रुता होने का कोई सवाल ही नहीं, न कोई निन्दा है । क्योंकि निन्दा करने का क्या अर्थ हो सकता है ? जो मैं कह रहा हूँ,. वह फिर लिखा जाएगा, तो लिखे हुए का क्या अर्थ हो सकता है लेकिन इतनी चेतावनी जरूरी है कि न निन्दा करना, न प्रशंसा करना । समझना; समझा तो वह मुक्ति की तरफ ले जाता है ।
प्रश्न : तो सिर्फ तीर्थंकरों को ही क्यों, बुद्ध और महावीर में भी वही रूप की समानता है । क्राइस्ट, राम और कृष्ण - सबमें वही समानता है । लेकिन वे अलग-अलग समय में हुए इसलिए इनकी बात छोड़ें हम । केवल बुद्ध और महावीर की बात करें । 'दोनों समकालीन हैं। दोनों में से महावीर ने
क्यों नहीं कहा कि जो मैं हूं, वही बुद्ध हैं; जो मेरा रूप है वही बुद्ध का रूप
है । और बुद्ध ने क्यों नहीं कहा कि जो मैं हूं वही महावीर का रूप है ?
उत्तर : विचारणीय बात है । चौबीस तीर्थंकरों की मूर्तियाँ एक जैसी हैं । तो क्यों क्राइस्ट की, क्यों बुद्ध की भी ऐसी नहीं है ? और ठीक कहते हैं आप, कम से कम बुद्ध तो महावीर के साथ ही थे, एक ही समय में थे । इन दोनों की मूर्तियां एक जैसी हो सकती थीं। लेकिन नहीं ! और नहीं हो सकती थीं ।
कारण कि ये जो चौबीस तीर्थंकरों की एक धारा है इस धारा ने
एक सोचने का ढंग निर्मित किया है, अभिव्यक्ति की एक 'कोड' लेंग्वेज निर्मित की है इस धारा ने । और यह धारा कोई तीर्थंकर नहीं बनाती । यह धारा तीर्थंकरों के आस-पास निर्मित होती है । यह सहज निर्मित होती है । एक भाषा, एक ढंग, एक प्रतीक की व्यवस्था निर्मित हुई है, शब्दों की परिभाषा और ढंग निर्मित