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प्रश्नोत्तर - प्रवचन- २
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जीवन है - या 'काम' का या 'राम' का । और 'काम' 'राम' के मन्दिर की दीवार है । ऐसा नहीं कि काम राम का दुश्मन है, सिर्फ बाहर की दीवार है । 'राम' को वही सुरक्षित किए हुए है चारों तरफ से । राम के रहने का घर उसी से बना है। राम को निवास न मिलेगा अगर 'काम' न रह जाए । तो 'काम' दुश्मन भी नहीं है । फिर भी 'काम' रोकने वाला है। अगर बाहर ही घूमते रहे, तो मूल ही जाओगे कि मन्दिर में एक जगह है जहाँ 'काम' नहीं है, जहाँ कुछ और शुरू होता है, एक दूसरी ही यात्रा शुरू होती है । लेकिन जब ऊब जाओ तभी तो भीतर जाओगे ।
अभी मैं भी देखता हूँ कि जब खुजराहो जाकर बैठ जाता हूँ तो जो देखने वाले आते हैं, वे पहले तो बाहर ही घूमते हैं । मन्दिर को कोई सीधा नहीं जाता । कभी कोई गया हो नहीं भीतर मन्दिर में । कोई भी जा कैसे सकता है ? उधर बैठ कर देखता हूँ तो जो भी यात्री आता है वह पहले बाहर घूमता है और इतने अद्भुत चित्र हैं कि कहाँ भीतर जाना ? कैसा भीतर ! वे इतने उलझाने वाले हैं और इतने अद्भुत हैं कि इतनी मैथुन प्रतिमाएँ इस अद्भुत ढंग से दुनिया में कहीं भी नहीं खोदीं । असल में दुनिया में इस गहरे अनुभव को बहुत कम लोग उपलब्ध हुए । अतः इसे खोदने का कोई उपाय न था । खोद ही नहीं पाए । अब पश्चिम करीब पहुँच रहा है, जहाँ हमने हजार दो हजार साल पहले खोदे वहाँ अब पहुँच रहा है। अब वहाँ 'सेक्स' को परिधि पूरी तरह प्रकट हो रही है । हो सकता है कि सौ दो सौ वर्षों में वह भीतर के मन्दिर को भी निर्मित करे । जोर से परिभ्रमण हो रहा है सेक्स का, अब भीतर का . मन्दिर निर्मित होगा । मैं देखता हूँ कि वहाँ तो बाहर यात्री घूम रहा है । धूप तेज होती जाती है और यात्री एक-एक मैथुन चित्र को देखता जाता है । थक गया है, पसीना-पसीना हो गया है । सब देख डाला बाहर; फिर कहता है--नलो अब भीतर भी देखें । बाहर से थक जाएगा तो कोई भीतर जाएगा । अब इसको पत्थर में भी खोदा है; कितनी मेहनत की है। इसे किताबों में भी लिखा है । लेकिन किताब में इतना ही लिखना पड़ेगा कि जब बाहर में थक जाओगे, 'काम' से जब थक जायोगे तब 'राम' की उपलब्धि होगी । लेकिन हो सकता है कि इतना सा वाक्य किसी के ख्याल में ही न आए; हो सकता है कि इसको पढ़कर तुम कुछ भी न समझो। तो इसका एक मंन्दिर भी बनाया है । और इसको हजार रूप में खोजा है - संगीत से भी, नृत्य से भी, सब तरफ से सब माध्यम से ।