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क्र० विषय श्लोक | क्र० विषय श्लोक
सं०
सं० १३७ वचन योग और भाषा बीच १३५३ | ११ भव स्थिति और काय स्थिति ७३ एकता
(द्वार ७-८) . १३८ भाषा के चार प्रकार १३५६ | १२ शरीर (द्वार-६)
६४ १३६ सत्य भाषा के दस प्रकार १३६१-१ १३ संस्थान, देहमान और समुद ,६६ १४० असत्य भाषा के दस प्रकार १३७८ घात (द्वार १०-१२) १४१ मिश्र भाषा के दस प्रकार १३८१ | १४ गति और आगति १४२ व्यवहार भाषा के चार प्रकार १३६५ (द्वार १३-१४) १४३ (३२) जीवों का प्रमाण १४१० १५ अन्तराप्ति और समय सिद्धि १२० १४४ (३३) जीवों की स्वज्ञाति १४११ | (१५-१६)
. की अपेक्षायें, अल्प-बहुत्वं . | १६. लेश्या, दिगाहार, सहनन, १२१-१२६ १४५ (३४) दिशा की अपेक्षायें, १४१२ . कषाय, संज्ञा, इन्द्रिय, असंज्ञी, वेद अल्प-बहुत्व
(१७-२४ द्वार) १४६ (३५) अपनी जाति उत्पन्न १४१३ | १७ मिथ्यादृष्टि आदि १२७
- होने के जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर _ (२५-२८ द्वार) १४७ (३६) भव संवेध - १४१४ / १८. सूक्ष्म जीवों को आहार (२६) १३१ . .१४८ (३७) महान अल्प-बहुत्व १४१६ /१६ गुण स्थान, योग और मान १३४ चौथा सर्ग
(३०-३२) १ संसारी जीवों की अलग-अलग २
२० जघन, अल्प-बहुत्व (३३) १४२ विवक्षायें
२१ दिशा के आश्रयो अल्प-बहुत्व १४६ २ मांडी के अनेक प्रकार
तथा अन्तर (३४-३५) ३ एकेन्द्रिय मार्गणा का स्वरूप
पाँचवा सर्ग ४ सूक्ष्म एकेन्द्रिय . .
१ बादर एकेन्द्रिय, व्याख्या और १. ५ जीव के स्वरूप और भेद
उसके पृथ्वीकाय आदि छः भेद ६ निगोद का स्वरूप
इनके प्रत्येक के भेद (द्वार-१) ५ ७ व्यवहार राशि और अव्यवहार ५७
वनस्पति के विषय में जीव तत्व ३० राशि का स्वरूप
की प्रतीति ८ जीव का स्थान (द्वार-२) ६८
४ साधारण वनस्पति के लक्षण ७५ है जीवों की पर्याप्ति, योनी, कुल ६६ | ५ भेद संख्या
६ प्रत्येक वनस्पति के लक्षण १० संवृतत्वादि चार द्वार (३-६) ६६ | ७ भेद
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