Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ कस्म ? जो अवगदवेदअणियट्टिउवसामओ पढमाणुभागकंडए वट्टमाणओ तस्स उक्कस्साणुभागविहत्ती । हदे अणुक्कस्सा । एवमकसाय-जहाक्खादसंजदाणं । णवरि उवसंतकसायपढमादिसमए तप्पाओग्गउक्कस्साणुभागसंतकम्मेण वट्टमाणस्स वत्तव्वं; तत्थ अणुभागस्स घादाभावादो।
२०. णाणाणु० आभिणि०-सुद०-ओहि. मोह० उक्क कस्स ? जेण मिच्छादिहिणा अहावीससंतकम्मिएण तप्पाओग्गउक्कस्साणुभागेण सह वेदगसम्मत्तं पडिवण्णं जाव तं ण हणदि ताव तस्स उक्कस्साणुभागविहत्ती। तम्मि हदे अणुक्कस्सा । एवं संजद संजद०-ओहिदंस०-सम्मादि०-वेदग०-सम्मामि०दिहि ति। मणपज्जव० आहार०भंगो। एवं संजद०-सामाइय-छेदो०-परिहार०संजदा ति। सुहुमसांपराय० उक० कस्स ? मुहुमसापराइयउवसामयस्स सगउक्कस्साणुभागेण सह वट्टमाणस्स । तम्हि हदे अणुक्कस्सो। सुक्कले० आभिणिभंगो। उवसमसम्मा० मोह० उक्क० कस्स ? जो मोहतप्पाओग्गउक्कस्ससंत्तकम्मेण सह वट्टमाणो उवसमसम्मादिही जाव पढमाणुभागखंडयं ण हणदि ताव तस्स उक्कस्साणुभागविहत्ती। तम्मि हदे अणुक्कस्सा। खइयसम्मा० अन्यके अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्ति होती है। अपगतवेदमें उत्कृष्ट अनुभागविभक्ति किसके होती है जो अनिवृत्तिकरण गुणस्थानके अवेद भागवर्ती उपशमश्रेणिवाला जीव प्रथम अनुभागकाण्डक में विद्यमान है उसके उत्कृष्ट अनुभागविभक्ति होती है । तथा उसका घात करने पर अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्ति होती है। इसीप्रकार अकषाय और यथाख्यातसंयतोंके जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि उपशान्तकषाय गुणस्थानके प्रथम आदि समयमें उसके योग्य उत्कृष्ट अनुभागकी सत्तासे युक्त जीवके उत्कृष्ट अनुभागविभक्ति कहनी चाहिये, क्योंकि वहां अनुभागका घात नहीं होता है।
२०. ज्ञानकी अपेक्षा आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानीमें मोहनीयकर्मका उत्कृष्ट अनुभाग किसके होता है ? अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाले जिस मिथ्यादृष्टिने तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अनुभागके साथ वेदकसम्यक्त्व प्राप्त किया है, जब तक वह उस अनुभागका घात नहीं करता है तब तक उसके उत्कृष्ट अनुभागविभक्ति होती है। तथा उत्कृष्ट अनुभागका घात करने पर अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्ति होती है। इसी प्रकार संयतासंयत, अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । मनःपर्ययज्ञानमें आहारककाययोगी के समान जानना चाहिये । इसी प्रकार संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत और परिहारविशुद्धिसंयतोंके जानना चाहिये । सूक्ष्मसाम्परायसंयतमें उत्कृष्ट अनुभाग किसके होता है ? जो सूक्ष्मसाम्परायसंयत उपशामक जीव अपने उत्कृष्ट अनुभागके साथ विद्यमान है उसके उत्कृष्ट अनुभाग होता है और उसका घात होने पर अनुत्कृष्ट अनुभाग होता है। शुक्ललेश्यावालेके आभिनिबोधिकज्ञानी की तरह भंग होता है। उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें मोहनीयकर्मका उत्कृष्ट अनुभाग किसके होता है ? जो उपशमसम्यग्दृष्टि मोहनीयकर्मके अपने योग्य उत्कृष्ट अनुभागको सत्तासे युक्त होता हुआ जब तक प्रथम अनुभागकाण्डकका घात नहीं करता है, तब तक उसके उत्कृष्ट अनुभागविभक्ति होती है। और उसका घात करने पर अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्ति होती है। क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें मोहनीय
१. अ० प्रती मोहतप्पाश्रोग्गसंतकम्मेण इति पाठः ।
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