Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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“जयधषलासहिदे कसायपाहुडे - [अणुभागविहत्ती ४ .. १५६. अंतराणुगमेण दुविहो णिद्दे सो--ओघेण आदेसेण । ओघेण मोह० तिण्णिपदविहित्तियाणं णत्थि अंतरं । एवं तिरिक्खोघं । आदेसेण रइएसु भुज०अवहि० णत्थि अंतरं । अप्प० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । एवं सव्वणेरइय-सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-मणुसतिय-देव भवणादि जाव सहस्सार त्ति । मणुसअपज्ज० तिण्णिपदवि० ज० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। आणदादि जाव णवगेवज्जा त्ति अप्प० ज० एगस०, उक्क० सत्त रादिदियाणि । अवहि णत्थि अंतरं । अणुदिसादि जाव सवसिद्धि ति अप्पदर० ज० एगस०, उक्क० वासपुधत्तं पलिदो० संखे०भागो। अवहि० णत्थि अंतरं । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि ति ।
एवमंतराणुगमो समत्तो। १५९. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी तीनों विभक्तियोंका अन्तरकाल नहीं है। इसीप्रकार सामान्य तिर्यञ्चामें जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें भुजगार और अवस्थितविभक्तिका अन्तर नहीं है। अल्पतर विभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार सब नारकी, सब पञ्च न्द्रिय तिर्यञ्च, सामान्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यिनी, सामान्य देव और भवनवासीसे लेकर सहस्रार स्वर्ग तकके देवों में जानना चाहिए । मनुष्य अपर्याप्तकोंमें तीनों विभक्तिस्थानोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। आनत स्वर्गसे लेकर नव ग्रेवेयक तकके देवोंमें अल्पतरविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सात रात-दिन है। अवस्थितविभक्तिका अन्तर नहीं है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें अल्पतरविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अपराजित तक वर्षपथक्त्व और सर्वार्थसिद्धिमें पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। अवस्थितविभक्तिका अन्तर नहीं है। इसप्रकार अन्तरानुगमको जानकर उसे अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये। - विशेषार्थ-ओघसे व आदेशसे सामान्य तिर्यञ्चोंमें तो तीनों ही विभक्तिवाले सर्वदा पाये जाते हैं, अत: अन्तर नहीं है। शेष गतियोंमें भुजगार और अवस्थितवाले सर्वदा पाये जाते हैं, अत: उनका अन्तर नहीं है। किन्तु मनुष्य अपर्याप्तकोंमें तीनों विभक्तिवालोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है, क्योंकि यह सान्तर मार्गणा है और उसका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्य के असंख्यातवें भागप्रमाण है। अल्पतरविभक्तिका अन्तर सब नारकियों सब पञ्चन्द्रियतिर्यश्चों, तीन प्रकारके मनुष्यों, सामान्य देवों और भवनवासीसे लेकर सहस्रारपर्यन्त तकके देवोंमें जघन्य से एक समय और उत्कृष्टसे अन्तर्मुहूर्त होता है । आनतसे लेकर सब वेयक तकके देवोंमें अल्पतरका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर सात रात दिन होता है, क्योंकि उनमें प्रथमोपशमसम्यक्त्वके अभिमुख हुए जीवके उत्कृष्ट हानि बतलाई है और प्रथम सम्यक्त्वका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तर सात रात-दिन बतलाया है तथा अनुदिशादिकमेंसे अपराजित तकके देवोंमें अल्पतरअनुभागविभक्तिका . उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्ष पृथक्त्व और सर्वार्थसिद्धिमें पल्यके संख्यातवें भागप्रमाण है। शेष कथन सुगम है।
इस प्रकार अन्तरानुगम समाप्त हुआ।
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