Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२)
अणुभागविहत्तीए भंगविचओ णाणानीवभंगविचयपरूवणं करिय संपहि उच्चारणमस्सिण णाणाजीवभंगविचयपरूवणं कस्सामो
। ३४२. णाणाजीवेहि भंगविचओ दुविहो-जहएणओ उक्स्स ओ चेदि । उक्कस्सए पयदं । दुविहो णि सो- ओघेण आदेसेण । ओघेण मिच्छत्तस्स उक्कस्साणुभागविहत्तिया भजियव्वा । अणुक्कस्सविहत्तिया णियमा अत्थि। सिया एदे च उक्कस्साणुभागविहत्तिओ च । सिया एदे च उक्कस्साणुभागविहत्तिया च । धुवभंगे पक्वित्ते तिणि भंगा । एवमणुक्कस्सस्स वि। णवरि विवरीयं वत्तव्वं । एवं सोलसक० णवणोकसायाणं । सम्मत्त सम्मामि० उक्कस्साणुभागस्स सिया सव्वे जीवा विहत्तिया। सिया विहत्तिया च अविहत्तिो च । सिया विहत्ति या च अविहत्तिया च । धुवेण सह तिरिणभंगा । अणुक्कस्सस्स सिया सव्वे जीवा अविहत्तिया । एवमेत्थ वि तिण्णि भंगा वत्तव्वा । मणुसतियम्मि ओघभंगो।
.३४३. आदेसेण णेरइएसु एवं चेव । णवरि सम्मामिच्छत्तस्स अणुक्कस्सं पत्थि । एवं पढमपुढवि-तिरिक्त--पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिं०तिरि०पज्ज०-देव-सोहम्मादि मिलानेसे तीन भङ्ग होते हैं। देशामर्पक चूर्णिसूत्र के आश्रयसे नाना जीवो की अपेक्षा भङ्गविचय का कथन करके अब उच्चारणाके आश्रयसे नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचयका कथन करते हैं--
३४२. नाना जीवो की अपेक्षा भङ्गविचय दो प्रकारका है--जघन्य और उत्कृष्ट । प्रकृतमें उत्कृष्टसे प्रयोजन है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीव भजितव्य हैं-कदाचित् होते भी हैं और कदाचित् नहीं भी होते । अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीव नियमसे होते हैं। कदाचित् अनेक जीव अनुत्कृष्ट विभक्तिवाले और एक जीव उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाला होता है। कदाचित् अनेक जीव अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले और अनेक जीव उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले होते हैं । इन दो भङ्गा में अनुत्कृष्ट विभक्तिवाले नियमसे होते हैं। इस ध्रुव भङ्गके मिलानेसे तीन भङ्ग होते हैं। इसी प्रकार अनुत्कृष्टके भी तीन भङ्ग होते हैं। इतना विशेष है कि उन भङ्गो को उत्कृष्टके भङ्गो से विपरीत कहना चाहिये। अथोत् कदाचित् सब जीव अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले होते हैं। कदाचित् एक जीव उ.कृष्ट अनुभागविभक्तिवाला और अनेक जीव अनुत्कृष्ट अनुभाग विभक्तिवाले होते हैं । कदाचित् अनेक जीव उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले और अनेक जीव अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले होते हैं । इसी प्रकार सोलह कषाय और नव नोकपायों के भङ्ग होते हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा कदाचित् सत्र जीव उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले होते हैं। कदाचित् अनेक जीव उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले और एक जीव उत्कृष्ट विभक्तिसे रहित होता है। कदाचित् अनेक "जीव उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले और अनेक जीव उससे रहित होते हैं। ध्रुव भगके साथ तीन भङ्ग होते हैं। अनुकृष्ट की अपेक्षा कदाचित् सब जीव अनु कृष्ट अनुभागविभक्तिसे रहित होते हैं। इस प्रकार अनुत्कृष्टके भी तीन भङ्ग कहने चाहिए। सामान्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुयिनियों में ओघके समान भङ्ग होते हैं।
३४३. आदेशसे नारकियों में इसी प्रकार भङ्ग होते हैं। इतना विशेष है कि उनमें सम्यग्मियात्वका अनुत्कृष्ट अनुभाग नहीं होता। इसी प्रकार पहली पृथिवी, सामान्य तिर्यञ्च, पञ्च
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