Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ ५३२. पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज. छब्बीसं पयडीणं अत्थि छव्विहा वड्डी छव्विहा हाणी अवहाणं च । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमत्थि अवहिदं । एवं मणुसअपज्ज०। तिएहं मणुस्साणमोघं । आणदादि जाव गवगेवज्जा त्ति वावीसं पयडीणमत्थि अणंतगुणहानी अवहिदं । अणंताणु०चउक्क० छवड्डी हाणी अवडिदं अवत्तव्वं च । सम्मत्तसम्मामि० देवोघं । अणुद्दिस्सादि जाव सव्वदृसिद्धि ति सत्तावीसं पयडीणमत्थि अणंतगुणहाणी अवहिदं च । सम्मामि० अत्थि अवहिदं। एवं जाणिदण णेदव्वं जाव अणाहारि ति ।
५३३. सामित्ताणुगमेण दुविहो णिद्दे सो—ोघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० छविहा वडी पंचविहा हाणी कस्स ? अण्णदरस्स मिच्छादिहिस्स। अणंतगुणहाणी अवहिदं च कस्स ? अएणदरस्स सम्माइहिस्स मिच्छाइहिस्स वा। एवमणंताणु० चउक्क० । गवरि अवत्तव्व. पढमसमयसंजुत्तस्स । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमणंतगुणहाणी कस्स ? अएणदरस्स दंसणमोहक्खवयस्स । एत्थ अएगदरसदो वेदोगाहणविसेसावेक्खो। अवहि० अण्णद० सम्मादिहिस्स मिच्छादिहिस्स वा । अवत्तव्वं कस्स ? पढमसमयसम्माइहिस्स । एवं तिएहं मणुस्साणं ।
५३४. आदेसेण णेरइएमु सत्तावीसं पयडीणमोघं। सम्मामि० अवहि० ९५३२. पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी छह प्रकारकी वृद्धि, छह प्रकारकी हानि और अवस्थान होता है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की अवस्थितविभक्ति होती है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तकोंमें जानना चाहिये । सामान्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें ओघकी तरह भङ्ग है । आनतसे लेकर नव प्रैवेयक तकके देवोंमें बाईस प्रकृतियों की अनन्तगुणहानि और अवस्थान होते हैं। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी छह प्रकारकी वृद्धि, छह प्रकारकी हानि, अवस्थिति और अवक्तव्यविभक्तियां होती हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भङ्ग सामन्य देवोंकी तरह है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सत्ताईस प्रकृतियोंकी अनन्तगुणहानि और अवस्थान होते हैं। सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थितविभक्ति होती है। इस प्रकार जानकार अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिए।
६५३३. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकार का है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, बारह कषाय और नव नोकषायोंकी छह प्रकारकी वृद्धि और पाँच प्रकारकी हानि किसके होती है ? किसी मिथ्यादृष्टि जीवके होती है। अनन्तगुणहानि और अवस्थान किसके होते हैं ? किसी सम्यग्दृष्टि अथवा मिथ्यादृष्टिके होते हैं। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए। इतना विशेष है कि अवक्तव्य विभक्ति अनन्तानुबन्धीका विसंयोजन करके पुनः संयोजन करनेवालेके प्रथम समयमें होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अनन्तगुणहानि किसके होती है ? किसी भी दर्शनमोहके क्षपकके होती है। यहाँ अन्यतर शब्द किसी खास वेद या अवगाहनाकी अपेक्षा नहीं करता है। अवस्थितविभक्ति किसी भी सम्यग्दृष्टि अथवा मिथ्यादृष्टिके होती है। अवक्तव्यविभक्ति किसके होती है ? सम्यग्दृष्टि जीवके प्रथम समयमें होती है ? इसी प्रकार तीन प्रकारके मनुष्योंमें जानना चाहिए।
५३४. श्रादेशसे नारकियोंमें सत्ताईस प्रकृतियोंका भङ्ग ओघकी तरह है । सम्य
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