Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 406
________________ गा० २२] अणुभागविहत्तीए हाणपरूवणा ३७७ संखे०भागवडिहाणविसयं गंतूण पढमसंखेजगुणवड्डी' उप्पज्जदि। एदिस्से टाणंतरं हेहिमअणंतभागवडिहाणंतरेहितो अणंतगुणं संखेजभागवडि-असंखेज्जभागवडिहाणंतरेहिंतो असंखेज्जगुणं । तेसिं तिहं पक्खेवफइयंतरादो एदस्स हाणस्स पक्खेवफद्दयंतरमणंतगुणमसंखे०गुणं च । तेसिं चेव पक्खेवफद्दयसलागाहिंतो एत्थतणपक्खेवफद्दयसलागाओ संखेज्जगुणाओ। कुदो एदं णव्वदे ? आइरियाणं सुत्ताविरुद्धवयणादो। एवं समयाविरोहेण कंडयमेत्तेसु संखेजगुणवडिहाणेसु गदेसु पुणो संखेजगुणवड्डिविसयं गंतूण असंखेजगुणवड्डी होदि । को एत्थ गुणगारो ? असंखेज्जा लोगा। हेहिमाणंतभागवडिहाणे असंखेजेहि लोगेहि गुणिदे असंखेज्जगुणवडी होदि त्ति भणिदं होदि । वडिदाणुभागे हेहिमाणंतभागवडिहाणं पडिरासिय पक्खित्ते असंखेज्जगुणवड्डिहाणं होदि। भागहारा इव सव्वेसु गुणगारा वड्डीए चेव होति ति कुदो णव्वदे ? अणंतगुणवड्डी काए परिवड्डीए परिवडिदा ? सव्वजीवेहिं ति वेयणामुत्तादो । पुव्वमवद्विदअणुभागो वि वड्डी चेव तेण विणा संपहि वड्डिदअणुभागेणेव अण्णस्स हाणस्मुसंख्यातभागवृद्धिस्थान उत्पन्न करने चाहिये । इससे ऊपर एक संख्यातभागवृद्धिस्थानके अन्तभूत स्थानोंके होनेपर पहला संख्यातगुणवृद्धिस्थान उत्पन्न होता है। इसका स्थानान्तर अधस्तन अनन्तभागवृद्धिस्थानान्तरसे अनन्तगुणा है और संख्यातभागवृद्धि तथा असंख्यातभागवृद्धिस्थानोंके अन्तरसे असंख्यातगुणा है। उक्त तीनों स्थानों के प्रक्षेप स्पर्धकोंके अन्तरसे इस स्थानके प्रक्षेप स्पर्धकका अन्तर अनन्तगुणा और असंख्यातगुणा है। उन तीनों स्थानोंकी प्रक्षेप स्पधेक शलाकाओंसे इस स्थानकी प्रक्षेप स्पर्धक शलाकाएँ संख्यातगुणी हैं। शंका-यह किस प्रमाणसे जाना ? समाधान-आचार्योंके सुत्रसे अविरुद्ध वचनोंसे जाना। इस प्रकार आगमके अविरुद्ध काण्डकप्रमाण संख्यातगुणवृद्धिस्थानोंके बीतने पर पुनः एक संख्यातगुणवृद्धिस्थानके अन्तभूत स्थानोंको बिताकर असंख्यातगुणवृद्धिस्थान होता है। शंका-इस असंख्यातगुणवृद्धिस्थानमें गुणकारका प्रमाण क्या है ? समाधान-असंख्यात लोक । आशय यह है कि इस स्थानके नीचेके अनन्तभागवद्धिस्थानको असंख्यात लोकसे गुणा करने पर असंख्यातगुणवृद्धि होती है। अधस्तन अनन्तभागवृद्धिस्थानको प्रतिराशि करके उसमें बढ़े हुए अनुभागके जोड़ देनेसे असंख्यातगुणवृद्धिस्थान होता है। शंका-सब स्थानोंमें भागहारोंके समान गुणकार वृद्धि के अनुसार ही होते हैं यह कैसे जाना ? समाधान-अनन्तगुणवृद्धि किस वृद्धिसे वृद्धिको प्राप्त हुई है ? सर्व जीवराशिरूप गुणवृद्धिसे वृद्धि को प्राप्त हुई है इस वेदनाखण्डके सूत्रसे जाना। शंका-पहलेका अवस्थित अनुभाग भी वृद्धिस्वरूप ही है, क्योंकि उसके विना वर्तमानमें बढ़े हुए अनुभागसे ही अन्य स्थानकी उत्पत्ति नहीं हो सकती ? । १. ता० अ०ा प्रत्योः पढमासंखेजगुणवड्डी इति पाठः। २. ता० प्रा० प्रत्योः गुणगार वड्डीए इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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