Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 426
________________ गा० २२ ] भागवित्तीए द्वापरूवणा ३९७ पडि अनंतगुणहीणकमेण घादो | एवं सम्मत्तस्स अंतोमुहुत्तमेताणि चेव अणुभागणाणि होति । मिच्छत्ताणुभागे पढमसमयउवसमसम्मादिद्विम्मि असंखेज्जलोगमेत्तपरिणामेहि सम्मत्तसरूवेण संकामिज्जमाणे असंखेज्जलोगमेत्तद्वाणाणि सम्मत्तस्स किण्ण लब्भंति ? ण, तत्थ अणुभागविसेसुप्पत्तिणिमित्तपरिणामाणमभावादो । तं पि कुदो वदे ? सम्मत्तस्स अंतोमुहुत्ताणि चैव अणुभागद्वाणाणि होति त्ति भनंताइरिएहिंतो । सम्माइहिम्मि मिच्छत्ते सम्मत्तस्सुवरि संकममाणे अणुभागहाणाणं वियप्पा किण्ण लब्भंति ? ण, मिच्छत्ताणुभागे सम्मत्ताणुभागसरूवेण परिणममाणे पोराणाणुभागं मोत्तूण अणुभागवडिहाणीणमणुवलंभादो । एवं सम्मामिच्छत्तस्स वि वत्तव्वं । णवरि एदस्स संखेज्ज सहरसमेत्ताणि चैव अणुभागहाणाणि होंति । कंडयघादेण विणा अणुसमयhare अणुभागहाणाणमणुवलंभादो । एवमणुभागे त्ति जं पदं तस्स अत्थपरूवणा समत्ता । उदयावलि से बाहर की स्थितियोंके अनुभागका जो प्रतिसमय अनन्तगुणहीन क्रमसे घात होता है उसे प्रतिसमय अपवर्तना कहते हैं । इस प्रकार' सम्यक्त्व प्रकृति के अन्तर्मुहूर्तमात्र ही अनुभागस्थान होते हैं । शंका-उपशम सम्यग्दृष्टि के प्रथम समय में असंख्यात लोकमात्र परिणामोंके द्वारा मिध्यात्वका अनुभाग सम्यक्त्व प्रकृतिरूपसे संक्रमण करता है। ऐसी अवस्था में सम्यक्त्वके असंख्यात लोकमात्र स्थान क्यों नहीं होते ? समाधान- नहीं, क्योंकि उस समय अनुभागविशेषकी उत्पत्ति निमित्तभूत परिणाम नहीं होते । शंका- यह कैसे जाना ? समाधान- सम्यक्त्व प्रकृतिके अन्तर्मुहूर्त प्रमाण ही अनुभागस्थान होते हैं ऐसा कथन करने वाले आचार्यों से जाना । शंका-सम्यग्दृष्टि के मिध्यात्वका सम्यक्त्व प्रकृतिमें संक्रमण होने पर अनुभागस्थानों के विकल्प क्यों नहीं पाये जाते । समाधान- नहीं, क्योंकि मिध्यात्वके अनुभाग के सम्यक्त्वके अनुभागरूपसे परिणमन करने पर पुराने अनुभागको छोड़ कर अनुभागकी वृद्धि अथवा हानि नहीं पाई जाती है । अर्थात् पुराना ही अनुभाग रहता है, न वह घटता है और न बढ़ता है । इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिका भी कथन करना चाहिये । इतना विशेष है कि सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति के संख्यात हजारमात्र ही अनुभागस्थान होते हैं, क्योंकि काण्डकघात के बिना प्रतिसमय अपवतनाके द्वारा अनुभागस्थान नहीं होते हैं । Jain Education International इस प्रकार गाथामें आये हुए 'अनुभाग' पदका व्याख्यान समाप्त हुआ । अनुभागविभक्ति समाप्त । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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