Book Title: Kasaypahudam Part 05
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 376
________________ ग० २२ अणुभागविहत्तीए ठाणपरूवणा ३४७ ५७५. संपहि एदस्स जहण्णाणुभागहाणस्स अविभागपडिच्छेदपरूवणा वग्गणपरूवणा फ६यपरूवणा अंतरपरूवणा चेदि एदेहि चदुहि अणियोगद्दारेहि परूवणं कस्सामो । तत्थ अविभागपडिच्छेदपरूवणाए परूवणा पमाणमप्पाबहुअं चेदि तिण्णि अणियोगद्दाराणि । जहणियाए वग्गणाए अत्थि अविभागपडिच्छेदा । एवं णेदव्वं जाव उक्कस्सिया वग्गणा ति । एवं परूवणा गदा । $ ५७६. जहणियाए वग्गणाए अविभागपडिच्छेदा केवडिया ? अणंता सव्वजीवेहि अणंतगुणा । एवं णेदव्वं जाव उक्कस्सिया वग्गणा त्ति । एवं पमाणपरूवणा गदा ! 5 ५७७. सव्वत्थोवा जहणियाए वग्गणाए अविभागपडिच्छेदा । उक्कस्सियाए वग्गणाए अविभागपडिच्छेदा अणंतगुणा। को गुणगारो ? सव्वजीवेहि अणंतगुणो । कदो ? जहण्णबंधहाणप्पहुडि उवरि असंखेज०लोगमेत्तछहाणेसु गदेसु सुहुमेइंदियजहण्णहाणचरिमवग्गणाए समुप्पत्तीदो । अजहण्णअणुक्कस्सियासु वग्गणासु अविभागपडिच्छेदा अणंतगुणा । को गुणगारो ? अभवसिद्धि एहि अणंतगुणो सिदाणमणंतभागमेत्तो । अणुकस्सियासु वग्गणासु अविभागपडिच्छेदा विसेसाहिया। अजण्णियासु वग्गणासु अविभागपडिच्छेदा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? जहण्णवग्गणाविभागपडिच्छेदेहि ऊणउक्कस्सवग्गणाविभागपडिच्छेदमेत्तेण । सव्वासु वग्गणासु अविभागपडिच्छेदा विसेसाहिया । के० मेत्तेण ? जहण्णवग्गणाविभागपडिच्छेदमेत्तेण । एवमविभागपडिच्छेदपरूवणा गदा। ५७५. अब इस जघन्य अनुभागस्थानका अविभागप्रतिच्छेदप्ररूपणा, वर्गणाप्ररूपणा, स्पर्धकप्ररूपणा और अन्तरप्ररूपणा इन चार अनुयोगद्वारोंका आश्रय लेकर कथन करते हैं। उनमें अविभागप्रतिच्छेदप्ररूपणाके प्ररूपणा, प्रमाण और अल्पबहुत्व ये तीन अनुयोगद्वार हैं। जघन्य वर्गणामें अविभागप्रतिच्छेद हैं। इस प्रकार उत्कृष्ट वर्गणा पर्यन्त ले जाना चाहिये। इस प्रकार प्ररूपणा स ५७६. जघन्य वर्गणामें कितने अविभागप्रतिच्छेद हैं ? अनन्त हैं। जो सब जीवोंसे अनन्तगुणे हैं। इस प्रकार उत्कृष्ट वर्गणा पर्यन्त ले जाना चाहिये। इस प्रकार प्रमाणप्ररूवणा समाप्त हुई। ५७७. जघन्य वर्गणामें, अविभागप्रतिच्छेद सबसे थोड़े हैं। उनसे उत्कृष्ट वर्गणामें अविभागप्रतिच्छेद अनन्तगुणे हैं। गुणकारका प्रमाण कितना है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा है। क्योंकि जघन्य बन्धस्थानसे लेकर ऊपर असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थानोंक एकेन्द्रिय जीवके जघन्य अनुभागस्थानकी अन्तिम वर्गणाको उत्पति होती। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट वर्गणाओंमें अविभागप्रतिच्छेद अनन्तगुणे हैं। यहाँ पर गुणकारका प्रमाण कितना है ? अभव्यराशिसे अनन्तगुणा और सिद्धराशिका अनन्तवां भागप्रमाण गुणकारका प्रमाण है। उनसे अनुत्कृष्ट वर्गणाओंमें अविभागप्रतिच्छेद विशेष अधिक हैं। उनसे अजघन्य वर्गणाओं में अविभागप्रतिच्छेद विशेष अधिक हैं । कितने अधिक हैं ? जधन्य वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदोंसे कम उत्कृष्ट वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेद प्रमाण अधिक हैं। उनसे सभी वर्गणाओंमें अविभाग सूक्ष्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438